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वफ़ा का खंजर
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अमर जयगढ़ इन हमलों से अपनी प्राण-रक्षा कर सकता है। नहीं, उनका मुंहतोड़ जवाब दे सकता है। अगर हम इस वक्त न जागे तो जयगढ़, प्यारा जयगढ़ हस्ती के परदे से हमेशा के लिए मिट जायगा और इतिहास भी उसे भुला देगा।

दूसरी तरफ़ से आवाज़ आती-विजयगढ़ के बेखवर सोनेवालो, हमारे मेहरबान पड़ोसियों ने अपने अखबारों की जबान बन्द करने के लिए जो नये कायदे लागू किये हैं, उन पर नाराजगी का इजहार करना हमारा फ़र्ज़ है। उनका मंशा इसके सिवा और कुछ नहीं है कि वहां के मुआमलों से हमको बेखबर रक्खा जाय और इस अंधेरे के परदे में हमारे ऊपर धावे किये जायं, हमारे गलों पर फेरने के लिए नये-नये हथियार तैयार किये जायं, और आखिरकार हमारा नाम-निशान मिटा दिया जाय। लेकिन हम अपने दोस्तों को जता देना अपना फ़र्ज़ समझते हैं कि अगर उन्हें शरारत के हथियारों की ईजाद में कमाल है तो हमें भी उनकी काट करने में कमाल है। अगर शैतान उनका मददगार है तो हमको भी ईश्वर की सहा- यता प्राप्त है और अगर अब तक हमारे दोस्तों को मालूम नहीं है तो अब होना चाहिए कि ईश्वर की सहायता हमेशा शैतान को दबा देती है।

जयगढ़ बाकमाल कलावन्तों का अखाड़ा था। शीरी बाई इस अखाड़े की सब्ज़ परी थी, उसकी कला की दूर-दूर ख्याति थी। वह संगीत की रानी थी जिसकी ड्योढ़ी पर बड़े-बड़े नामवर आकर सर झुकाते थे। चारों तरफ विजय का डंका बजाकर उसने विजयगढ़ की ओर प्रस्थान किया, जिससे अब तक उसे अपनी प्रशंसा का कर न मिला था। उसके आते ही विजयगढ़ में एक इंकलाब-सा हो गया। राग-द्वेष और अनुचित गर्व हवा से उड़नेवाली सूखी पत्तियों की तरह तितर-बितर हो गये। सौन्दर्य और राग-रंग के बाजार में धूल उड़ने लगी, थियेटरों और नृत्यशालाओं में वीरानी छा गयी। ऐसा मालूम होता था कि जैसे सारी सृष्टि पर जादू छा गया है। शाम होते ही विजयगढ़ के धनी-धोरी जवान-बूढ़े शीरी बाई की मजलिस की तरफ़ दौड़ते थे। सारा देश शीरी की भक्ति के नशे में डूब गया।

विजयगढ़ के सचेत क्षेत्रों में देशवासियों के इस पागलपन से एक बेचैनी की हालत पैदा हुई, सिर्फ यही नहीं कि उनके देश की दौलत बर्बाद हो रही थी बल्कि उनका राष्ट्रीय अभिमान और तेज भी धूल में मिला जाता था। जयगढ़ की एक