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गुप्त धन
 

और हमारी मेहनतों की रौशन गवाहियां हैं, जिनकी सजावट और खूबी को दुनिया की कौमें स्पर्द्धा की आँखों से देखती हैं, वह अर्द्ध-बर्बर, असभ्य लश्करियों का पड़ाव बनेंगी और उनके तबाही के जोश का शिकार। क्या अपनी क़ौम को इन तबाहियों का निशाना बनने दूं? महज इसलिए कि वफ़ा का मेरा उसूल न टूटे?

उफ् यह किले जहरीले गैस कहां से आ गये! किसी जयगढ़ी जहाज़ की हरकत होगी! सर में चक्कर-सा आ रहा है। यहाँ से कुमक भेजी जा रही है। किले की दीवार के सूराखों में भी तोपें चढ़ायी जा रही हैं। जयगढ़वाले किले के सामने आ गये। एक धावे में वह हुमायूं दरवाजे तक आ पहुंचेंगे। विजयगढ़वाले इस बाढ़ को अब नहीं रोक सकते। जयगढ़वालों के सामने कौन ठहर सकता है ? या अल्लाह, किसी तरह दरवाजा खुद-ब-खुद खुल जाता, कोई जयगढ़ी हवाबाज़ मुझसे ज़बर्दस्ती कुंजी छीन लेता, मुझे मार डालता। आह, मेरे इतने अजीज हमवतन प्यारे भाई आन की आन में खाक में मिल जायेंगे और मैं बेबस हूं! हाथों में जंजीर है, पैरों में बेड़ियां। एक-एक रोआँ रस्सियों से जकड़ा हुआ है। क्यों न इस जंजीर को तोड़ दूं, इन बेड़ियों के टुकड़े-टुकड़े कर दूं और दरवाजे के दोनों बाजू अपने अजीज़ फ़तेह करनेवालों की अगवानी के लिए खोल दूं। माना कि यह गुनाह है पर यह मौका गुनाह से डरने का नहीं। जहन्नुम के आग उगलनेवाले सांप और खून पीनेवाले जानवर और लपकते हुए शोले मेरी रूह को जलायें, तड़पायें, कोई बात नहीं। अगर महज़ मेरी रूह की तबाही, मेरी क़ौम और वतन को मौत के गड्ढे से वचा सके तो वह मुबारक है। विजयगढ़ ने ज्यादती की है, उसने महज़ जयगढ़ को जलील करने के लिए, सिर्फ उसको भड़काने के लिए शीरी बाई को शहर-निकाले का हुक्म जारी किया जो सरासर बेजा था। हाय, अफ़सोस, मैंने उसी वक्त इस्तीफा क्यों न दे दिया और गुलामी की इस कैद से क्यों न निकल गया।

हाय ग़ज़ब, जयगढ़ी फ़ौज खन्दकों तक पहुंच गयी, या खुदा! इन जांबाजों पर रहम कर, इनकी मदद कर। कलदार तोपों से कैसे गोले बरस रहे हैं, गोया आसमान के बेशुमार तारे टूटे पड़ते हैं। अल्लाह की पनाह, हुमायूं दरवाजे पर गोलों की कैसी चोटें पड़ रही हैं। कान के परदे फटे जाते हैं। काश दरवाजा टूट जाता! हाय मेरा असकरी, मेरे जिगर का टुकड़ा, वह घोड़े पर सवार आ रहा है। कैसा बहादुर, कैसा जांबाज, कैसी पक्की हिम्मतवाला! आह, मुझ अभागे कलमुंहे को मौत क्यों नहीं आ जाती! मेरे सर पर कोई गोला क्यों नहीं आ गिरता! हाय, जिस पौदे को अपने जिगर के खून से पाला, जो मेरी पतझड़ जैसी ज़िन्दगी का सदाबहार फूल था, जो