पृष्ठ:गुप्त धन 1.pdf/२५९

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वासना की कड़ियाँ


बहादुर, भाग्यशाली क़ासिम मुलतान' की लड़ाई जीतकर घमंड के नशे से चूर चला आता था। शाम हो गयी थी, लश्कर के लोग आरामगाह की तलाश में नज़रें दौड़ाते थे, लेकिन क़ासिम को अपने नामदार मालिक की खिदमत में पहुंचने का शौक उड़ाये लिये आता था। उन तैयारियों का खयाल करके जो उसके स्वागत के लिए दिल्ली में की गयी होगी उसका दिल उमंगों से भरपूर हो रहा था। सड़कें बन्दनवारों और झंडियों से सजी होंगी, चौराहों पर नौबतखाने अपना सुहाना राग अलापेंगे, ज्योंही मैं शहर के अन्दर दाखिल हूंगा सारे शहर में शोर मच जायगा, तो अगवानी के लिए जोर-शोर से अपनी आवाजें बुलन्द करेंगी। हवेलियों के झरोखों पर शहर की चांद जैसी सुन्दर स्त्रियां आंखें गड़ाकर मुझे देखेंगी और मुझ पर फूलों की बारिश करेंगी। जड़ाऊ हौदों पर दरबार के लोग मेरी अगवानी को आयेंगे। इस शान से दीवाने खास तक जाने के बाद जब मैं अपने हुजूर की खिदमत में पहुंचूंगा तो वह बाँहें खोले हुए मुझे सीने से लगाने के लिए उठेगे और मैं बड़े आदर से उनके पैरों को चूम लूंगा। आह वह शुभ घड़ी कब आयेगी? कासिम मतवाला हो गया, उसने अपने चाव की वेसुधी में घोड़े को एड लगायी।

कासिम लश्कर के पीछे था। घोड़ा एड पाते ही आगे बढ़ा, कैदियों का झुण्ड पीछे छूट गया। घायल सिपाहियों की डोलियां पीछे छूटी, सवारों का दस्ता पीछे रहा। सवारों के आगे मुलतान के राजा की वेगमों और शहज़ादियों की पीनसे और सुखपाल थे । इन सवारियों के आगे-पीछे हथियारबन्द ख्वाजासराओं की एक वड़ी जमात थी। कासिम अपने रौ में घोड़ा बढ़ाये चला आता था। यकायक उसे एक सजी हुई पालकी में से दो आंखें झांकती हुई नजर आयीं। कासिम ठिठक गया, उसे मालूम हुआ कि मेरे हाथों के तोते उड़ गये, उसे अपने दिल में एक कंपकंपी, एक कमजोरी और बुद्धि पर एक उन्माद-सा अनुभव हुआ। उसका आसन खुद-ब-खुद ढीला पड़ गया। तनी हुई गर्दन झुक गयी। नजरें नीची हुई। वह दोनों आंखें दो चमकते और नाचते हुए सितारों की तरह, जिनमें जादू का-सा आकर्षण था, उसके दिल के गोशे में आबैठीं। वह जिधर ताकता था वही दोनों उमंग की रोशनीं