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गुप्त धन
 


एक रोज मलिका शेर अफ़गन ने मसऊद को दरवार में बुलाया और यह बोली—ऐ घमण्डी नौजवान! खुदा का शुक्र है कि तू मेरी बी की चोट से अच्छा हो गया, अब मेरे इलाके से जा, तेरी गुस्ताखी माफ़ करती हूँ। मगर आइन्दा मेरे इलाके में शिकार के लिए आने की हिम्मत न करना। फ़िलहाल ताकीद के तौर पर तेरी तलवार छीन ली जायगी ताकि तू घमंड के नशे से चूर होकर फिर इधर कदम बढ़ाने की हिम्मत न करे।

मसऊद ने नंगी तलवार मियान से खींच ली और कड़ककर बोला—जब तक मेरे दम में दम है, कोई यह तलवार मुझसे नहीं ले सकता। यह सुनते ही एक देव-जैसा लम्बा-तड़ंगा हैकल पहलवान ललकारकर बढ़ा और मसऊद की कलाई पर तेगे का तुला हुआ हाथ चलाया ! मसऊद ने वार खाली दिया और सम्हलकर तेगे का वार किया तो पहलवान की गर्दन की पट्टी तक बाकी न रही। यह कैफियत देखते ही मलिका की आँखों से चिनगारियाँ उड़ने लगीं। भयानक गुस्से के स्वर में बोली-खबरदार, यह शख्स यहाँ से जिन्दा न जाने पावे। चारों तरफ़ से आजमाये हुए मजबूत सिपाही पिल पड़े और मसऊद पर तलवारों और बर्छियों की बौछार पड़ने लगी।

मसऊद का जिस्म ज़ख्मों से छलनी हो गया। खून के फ़वारे जारी थे और खून की प्यासी तलवारें ज़बान खोले बार-बार उसकी तरफ़ लपकती थीं और उसका खून चाटकर अपनी प्यास बुझा लेती थीं। कितनी ही तलवारें उसकी ढाल से टकराकर टूट गयीं, कितने ही बहादुर सिपाही ज़ख्मी होकर तड़पने लगे और कितने ही उस दुनिया को सिधारे। मगर मसऊद के हाथ में वह आबदार शमशीर ज्यों की त्यों बिजली की तरह कौंधती और सुथराव करती रही। यहाँ तक कि इस फ़न के कमाल को समझनेवाली मलिका ने खुद उसकी तारीफ़ का नारा बुलन्द किया और उसके तेगे को चूमकर बोली—मसऊद! तू बहादुरी के समुन्दर का मगर है। शेरों के शिकार में वक्त वर्वाद मत कर। दुनिया में शिकार के अलावा और भी ऐसे मौके हैं जहाँ तु अपने आबदार तेग का जौहर दिखा सकता है जा और मुल्कोकौम की खिदमत कर। सैरो शिकार हम जैसी औरतों के लिए छोड़ दे।

मसऊद के दिल ने गुदगुदाया, प्यार की बानी जवान तक आयी मगर बाहर निकल न सकी और उसी वक्त वह अपने दिल में किसी की पलकों की टीस लिये हुए तीन हफ्तों के बाद अपनी बेक़रार मां के क़दमों पर जा गिरा।