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गुप्त धन
 

से चमकते हुए तारे नजर आते थे। उसे बर्छी नहीं लगी, कटार नहीं लगी, किसी ने उस पर जादू नहीं किया, मंतर नहीं किया, नहीं, उसे अपने दिल में इस वक्त एक मज़ेदार बेसुधी, दर्द की एक लज्जत, मीठी-मीठी-सी एक कैफ़ियत और एक सुहानी चुभन से भरी हुई रोने की-सी हालत महसूस हो रही थी। उसका रोने को जी चाहता था, किसी के दर्द की पुकार सुनकर शायद वह रो पड़ता, बेताब हो जाता। उसका दर्द का एहसास जाग उठा था जो इश्क़ की पहली मंज़िल है।

क्षण भर बाद उसने हुक्म दिया—आज हमारा यहीं कयाम होगा।

आधी रात गुज़र चुकी थी, लश्कर के आदमी मीठी नींद सो रहे थे। चारों तरफ़ मशालें जलती थीं और तिलाये के जवान जगह-जगह बैठे जम्हाइयां लेते थे। लेकिन कासिम को आंखों में नींद न थी। वह अपने लम्बे-चौड़े पुरलुत्फ़ खेमे में बैठा हुआ सोच रहा था—क्या इस जवान औरत को एक नज़र देख लेना कोई बड़ा गुनाह है? माना कि वह मुलतान के राजा की शहज़ादी है और मेरे बादशाह अपने हरम को उससे रौशन करना चाहते हैं लेकिन मेरी आरजू तो सिर्फ इतनी है कि उसे एक निगाह देख लूं और वह भी इस तरह कि किसी को खबर न हो। बस! और मान लो यह गुनाह भी हो तो मैं इस वक्त यह गुनाह करूंगा। अभी हजारों बेगुनाहों को इन्हीं हाथों से कत्ल कर आया हूँ। क्या खुदा के दरवार में इन गुनाहों की माफ़ी सिर्फ इसलिए हो जायगी कि वह बादशाह के हुक्म से किये गये? कुछ भी हो, किसी नाजनीन को एक नजर देख लेना किसी की जान लेने से बड़ा गुनाह नहीं। कम से कम मैं ऐसा नहीं समझता।

क़ासिम दीनदार नौजवान था। वह देर तक इस काम के नैतिक पहलू पर गौर करता रहा। मुलतान को फ़तेह करने वाला हीरो दूसरी बाधाओं को क्यों खयाल में लाता?

उसने अपने खेमे से बाहर निकलकर देखा, वेगमों के खेमे थोड़ी ही दूर पर गड़े हुए थे। कासिम ने जान-बूझकर अपना खेमा उनके पास लगाया था। इन खेमों के चारों तरफ़ कई मशालें जल रही थीं और पांच हब्शी ख्वाजासरा नंगी तलवारें लिये टहल रहे थे। कासिम आकर मसनद पर लेट गया और सोचने लगा—इन कम्बख्तों को क्या नींद न आयेगी। और चारों तरफ़ इतनी मशालें क्यों जला रक्खी हैं? इन का गुल होना जरूरी है। इसलिए पुकारा—मसरूर।