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वासना की कड़ियाँ
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अमृत पीने लगा। उसे अब वह भय न था जो खेमे में आते वक्त हुआ था। उसने जरूरत पड़ने पर अपनी भागने की राह सोच ली थी।

कासिम एक मिनट तक मूरत की तरह खड़ा शहज़ादी को देखता रहा। काली- काली लटें खुलकर उसके गालों को छिपाये हुए थीं। गोया काले-काले अक्षरों में एक चमकता हुआ शायराना खयाल छिपा हुआ था। मिट्टी की इस दुनिया में यह मज़ा, यह घुलावट, यहदीप्ति कहां? कासिम की आंखें इस दृश्य के नशे से चूर हो गयीं। उसके दिल पर एक उमंग बढ़ानेवाला उन्माद-सा छा गया, जो नतीजों से नहीं डरता था। उत्कण्ठा ने इच्छा का रूप धारण किया। उत्कण्ठा में अघीरता थी और आवेश, इच्छा में एक उन्माद और पीड़ा का आनन्द। उसके दिल में इस सुन्दरी के पैरों पर सर मलने की, उसके सामने रोने की, उसके कदमों पर जान दे देने की, प्रेम का निवेदन करने की, अपने नाम को बयान करने की एक लहर-सी उठने लगी। वासना के भंवर में पड़ गया।

क़ासिम आध घंटे तक उस रूप की रानी के पैरों के पास सर झुकाये सोचता रहा कि उसे कैसे जगाऊं। ज्योंही वह करवट बदलती वह डर के मारे थरथरा जाता। वह बहादुरी जिसने मुलतान को जीता था, उसका साथ छोड़े देती थी।

एकाएक कासिम की निगाह एक सुनहरे गुलाबपाश पर पड़ी जो करीब ही एक चौकी पर रक्खा हुआ था। उसने गुलाबपाश उठा लिया और एक मिनट खड़ा सोचता रहा कि शहजादी को जगाऊं या न जगाऊँ? सोने की डली पड़ी हुई देखकर हमें उसके उठाने में जो आगा-पीछा होता है, वहीं इस वक्त उसे हो रहा था। आखिरकार उसने कलेजा मजबूत करके शहजादी के कान्तिमान मुखमण्डल पर गुलाब के कई छीटे दिये। दीपक मोतियों की लड़ी से सज उठा।

शहजादी ने चौंककर आँखें खोली और कासिम को सामने खड़ा देखकर फ़ौरन मुंह पर नकाब खींच लिया और धीरे से बोली—मसरूर

कासिम ने कहा—मसरूर तो यहां नहीं है, लेकिन मुझे भी अपना एक अदना जांबाज़ खादिम समझिए। जो हुक्म होगा उसकी तामील में बाल बराबर उज्र न होगा।

शहज़ादी ने नकाब और खींच लिया और खेमे के एक कोने में जाकर खड़ी हो गयी।