पृष्ठ:गुप्त धन 1.pdf/२६४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
गुप्त धन
२५२
 

कासिम को अपनी वाक्-शक्ति का आज पहली बार अनुभव हुआ! वह बहुत कम बोलनेवाला और गम्भीर आदमी था। अपने हृदय के भावों को प्रकट करने में उसे हमेशा झिझक होती थी लेकिन इस वक्त शब्द बारिश की बूंदों की तरह उसकी जवान पर आने लगे। गहरे पानी के बहाव में एक दर्द का स्वर पैदा हो जाता है। बोला—मैं जानता हूं कि मेरी यह गुस्ताखी आपकी नाजुक तवीयत पर नागवार गुजरी है। हुजूर, इसकी जो सजा मुनासिब समझें उसके लिए यह सर झुका हुआ है। आह, मैं ही वह बदनसीब, काले दिल का इंसान हूं जिसने आपके बुजुर्ग बाप और प्यारे भाइयों के खून से अपना दामन नापाक किया है। मेरे ही हाथों मुलतान के हजारों जवान मारे गये, सल्तनत तबाह हो गयी, शाही खानदान पर मुसीबत आयी और आपको यह स्याह दिन देखना पड़ा। लेकिन इस वक्त आपका यह मुजरिम आपके सामने हाथ बांधे हाज़िर है। आपके एक इशारे पर वह आपके कदमों पर न्योछावर हो जायगा और उसकी नापाक जिन्दगी से दुनिया पाक हो जायगी। मुझे आज मालूम हुआ कि बहादुरी के परदे में वासना आदमी से कैसे-कैसे पाप करवाती है। यह महज लालच की आग है, राख में छिपी हुई। सिर्फ़ एक कातिल जहर है, खुशनुमा शीशे में बन्द! काश मेरी आंखें पहले खुली होती तो एक नामवर शाही खानदान यों खाक में न मिल जाता। पर इस मुहब्बत की शमा ने, जो कल शाम को मेरे सीने में रौशन हुई, इस अंधेरे कोने को रोशनी से भर दिया। यह उन रूहानी जबात का फ़ैज है, जो कल मेरे दिल में जाग उठे, जिन्होंने मुझे लालच की कैद से आजाद कर दिया। इसके बाद कासिम ने अपनी बेक़रारी और दर्दे दिल और वियोग की पीड़ा का बहुत ही करुण शब्दों में वर्णन किया, यहां तक कि उसके शब्दों का भंडार खत्म हो गया। अपना हाल कह सुनाने की लालसा पूरी हो गयी।

लेकिन वह वासना का बन्दी वहाँ से हिला नहीं। उसकी आरजूओं ने एक कदम और आगे बढ़ाया। मेरी इस 'रामकहानी का हासिल' क्या? अगर सिर्फ दर्दे दिल ही सुनाना था, तो किसी तसवीर को सुना सकता था। वह तसवीर इससे ज्यादा ध्यान से और खामोशी से मेरे ग़म की दास्तान सुनती। काश मैं भी इस रूप की रानी की मीठी आवाज़ सुनता, वह भी मुझसे कुछ अपने दिल का हाल कहती, मुझे मालूम होता कि मेरे इस दर्द के किस्से का उसके दिल पर क्या असर हुआ। काश मुझे मालूम होता कि जिस आग में मैं फूंका जा रहा हूं, कुछ उसकी आंच उधर