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शेख मखमूर
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नमकखोर सरदार की फ़ौज रोज ब रोज़ बढ़ने लगी। पहले तो वह अँधेरे के पर्दे में शाही खजानों पर हाथ बढ़ाता रहा, धीरे-धीरे एक बाकायदा फ़ौज तैयार हो गयो, यहाँ तक कि सरदार को शाही फौजों के मुकावले में अपनी तलवार आजमाने का हौसला हुआ, और पहली लड़ाई में चौबीस किले इस नयी फ़ौज के हाथ आ गये। शाही फ़ौज ने लड़ने में जरा भी कसर न की मगर वह ताकत, वह जोश, वह जज्बा जो सरदार नमकखोर और उसके दोस्तों के दिलों को हिम्मत के मैदान में आगे बढ़ाता रहता था, किशवरकुशा दोयम के सिपाहियों में गायव था। लड़ाई के कलाकौशल, हथियारों की खूबी और ऊपर दिखायी पड़नेवाली शान-शौकत के लिहाज से दोनों फ़ौजों का कोई मुकाबला न था। बादशाह के सिपाही लहीम-शहीम, लम्बे-तडंगे और आजमाये हुए थे। उनके साज-सामान और तौर-तरीके से देखनेवालों के दिलों पर एक डर-सा छा जाता था और वहम भी यह गुमान न कर सकता था कि इस ज़बर्दस्त जमात के मुकाबले में निहत्थी-सी अधनंगी और बेकायदा सरदारी फ़ौज एक पल के लिए भी पैर जमा सकेगी। मगर जिस वक्त 'मारो' की दिल बढ़ानेवाली पुकार हवा में गूंजी, एक अजीबोगरीब नज्जारा सामने आया। सरदार के सिपाही तो नारे मारकर आगे धावा करते थे और बादशाह की फ़ौज भागने की राह पर दबी हुई निगाहें डालती थी। दम के दम में मोर्चे गुबार को तरह फट गये और जब मस्क़ात के मजबूत किले में सरदार नमकखोर शाही किले-दार की मसनद पर अमीराना ठाट-बाठ से बैठा और अपनी फ़ौज को कारगुजारियों और जाँबाजियों का इनाम देने के लिए एक तश्त में सोने के तमगे मंगवाकर रखते तो सबसे पहले जिस सिपाही का नाम पुकारा गया वह नौजवान मसऊद था।

मसऊद पर इस वक्त उसकी फ़ौज धमंड करती थी। लड़ाई के मैदान में सबसे पहले उसी की तलवार चमकती थी और धावे के वक्त सबसे पहले उसी के क़दम उठते थे। दुश्मन के मोर्चें में ऐसा वेधड़क धुसता था जैसे आसमान में चमकता हुआ लाल तारा । उसकी तलवार के वार क़यामत थे और उसके तीर का निशाना मौत का सन्देश ।

मगर टेढ़ी चाल की तकदीर से उसका यह प्रताप, यह प्रतिष्ठा न देखी गयी। कुछ थोड़े से आजमाये हुए अफ़सर जिनके तेगो की चमक मसऊद के तेग़ के सामने मन्द पड़ गयी थी, उससे खार खाने लगे और उसे मिटा देने की तदबीरें सोचने लगे। संयोग से उन्हें मौका भी जल्द हाथ आ गया।