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शेख मखमूर
१७
 


तब सरदारी फ़ौज और अफ़सर सव के सव लूट के माल पर टूटे और मसऊद जख्मों से चूर और खून में रँगा हुआ अपने कुछ जान पर खेलनेवाले दस्तों के साथ मस्कात के किले की तरफ़ लौटा मगर जब होश ने आँखें खोली और हवास ठिकाने हुए तो क्या देखता है कि मैं एक सजे हुए कमरे में मखमली गद्दे पर लेटा हुआ हूँ। फूलों की सुहानी महक और लम्बी छरहरी सुन्दरियों के जमघट से कमरा चमन बना हुआ था। ताज्जुब से इधर-उधर ताकने लगा कि इतने में एक अप्सरा-जैसी सुन्दर युक्ती तश्त में फूलों का हार लिये धीरे-धीरे आती हुई दिखायी दी कि जैसे बहार फूलों की डाली पेश करने आ रही है। उसे देखते ही उन लंबी छरहरी सुन्दरियों ने आँखें बिछायीं और उसकी हिनाई हथेली को चूमा। मसऊद देखते ही पहचान गया। यह मलिका शेर अफ़गन थी।

मलिका ने फूलों का हार मसऊद के गले में डाला। हीरे-जवाहरात उस पर चढ़ाये और सोने के तारों से टकी हुई मसनद पर बड़ी आन-बान से बैठ गयी। साजिन्दों ने बीन ले-लेकर विजयी अतिथि के स्वागत में सुहाने राग अलापने शुरू किये।

यहाँ तो नाच गाने की महफ़िल थी उधर आपसी डाह ने नये-नये शिगूफ़े खिलाये। सरदार से शिकायत की कि मसऊद जरूर दुश्मन से जा मिला है और आज जान बूझकर फ़ौज का एक दस्ता लेकर लड़ने को गया था ताकि उसे खाक और खून में सुलाकर सरदारी फ़ौज को वेचिराग़ कर दे। इसके सबूत में कुछ जाली खत भी दिखाये गये और इस कमीनी कोशिश में जबान की ऐसी चालाकी से काम लिया कि आखिर सरदार को इन बातों पर यकीन आ गया। पौ फटे जब मसऊद मलिका शेर अफ़गत के दरवार से विजय का हार गले में डाले सरदार को बधाई देने गया तो बजाय इसके कि कद्रदानी का सिरोपा और बहादुरी का तमगा पाये, उसको खरी-खोटी बातों के तीर का निशाना बनाया गया और हुक्म मिला कि तलवार कमर से खोलकर रख दे।

मसऊद स्तम्भित रह गया। यह तेगा मैंने अपने बाप से बिरसे में पाया है और यह मेरे पिछले बड़प्पन की आखिरी यादगार है। यह मेरी बाँहों की ताक़त और मेरा सहयोगी और मददगार है। इसके साथ कैसी-कैसी स्मृतियाँ जुड़ी हुई हैं, क्या मैं जीते जी इसे अपने पहलू से अलग कर दूं? अगर मुझ पर कोई आदमी लड़ाई के मैदान से क़दम हटाने का इलज़ाम लगा सकता, अगर कोई शख्स इस तेग का इस्तेमाल मेरे मुक़ाबिले में ज्यादा कारगुजारी के साथ कर सकता, अगर मेरी