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गुप्त धन
 


बोले—ऐ शाह जवाँबख्त! मैं तेरी दावत कबूल करता हूँ, अगरचे मैं बुड्ढा हो गया हूँ और बाजुओं में तलवार पकड़ने की ताक़त वाक़ी नहीं रही, मगर मेरे खून में वही गर्मी और दिल में वही जोश है जिनकी बदौलत हमने यह मुल्क शाह वामुराद से लिया था। या तो मैं इस नापाक कुत्ते की हस्ती खाक में मिला दूंगा या इस कोशिश में अपनी जान निसार कर दूंगा, ताकि अपनी आँखों से सल्तनत की बर्बादी न देखू। यह कहकर अमीर पुरतदबीर वहाँ से उठा और मुस्तैदी से जंगी तैयारियों में लग गया। उसे मालूम था कि यह आखिरी मुक़ाबिला है और अगर इसमें नाकाम रहे तो मर जाने के सिवाय और कोई चारा नहीं है। उधर सरदार नमकखोर धीरे-धीरे राजधानी की तरफ बढ़ता आता था, यकायक उसे खबर मिली कि अमीर पुरतदबीर बीस हजार पैदल और सवारों के साथ मुक़ाबिले के लिए आ रहा है।

यह सुनते ही सरदार नमकखोर की हिम्मतें छूट गयीं। अमीर पुरतदबीर बुढ़ापे के बावजूद अपने वक्त का एक ही सिपहसालार था ! उसका नाम सुनकर बड़े-बड़े बहादुर कानों पर हाथ रख लेते थे। सरदार नमकखोर का खयाल या कि अमीर कहीं एक कोने में बैठे खुदा की इबादत करते होंगे। मगर उनको अपने मुकाबिले में देखकर उसके होश उड़ गये कि कहीं ऐसा न हो कि इस हार से हम अपनी सारी जीत खो बैठे और बरसों की मेहनत पर पानी फिर जाय। सब की यही सलाह हुई कि वापस चलना ही ठीक है। उस वक्त शेख मखमूर ने कहा—ऐ सरदार नमकखोर! तूने मुल्के जन्नतनिशां को छुटकारा दिलाने का बीड़ा उठाया है क्या इन्हीं हिम्मतों से तेरी आरजूएं पूरी होंगी? तेरे सरदार और सिपाहियों\ ने कभी मैदान से कदम पीछे नहीं हटाया, कभी पीठ नहीं दिखायी, तीरों की बौछार को तुमने पानी की फुहार समझा और बन्दुकों की बाढ़ को फूलों की बहार। क्या इन चीजों से इतनी जल्दी तुम्हारा जी भर गया? तुमने यह लड़ाई सल्तनत को बढ़ाने के कमीने इरादे से नहीं छेड़ी है। तुम सच्चाई और इंसाफ़ की लड़ाई लड़रहे हो।क्या तुम्हारा जोश इत्तने जल्द ठंडा हो गया? क्या तुम्हारी इंसाफ़ की तलवार की प्यास इतनी जल्दी बुझ गयी? तुम खूब जानते हो कि इंसाफ़ औरसच्चाई की जीत जरूर होगी, तुम्हारी इन बहादुरियों का इनाम खुदा के दरबार से जरूर मिलेगा। फिर अभी से क्यों हौसले छोड़े देते हो? क्या बात है, अगर अमीर पुरतदबीर बड़ा दिलेर और इरादे का पक्का सिपाही है। अगर वह शेर है तो तुम शेर मर्द हो; अगर उसकी तलवार लोहे की है तो तुम्हारा तेगा फौलाद का है; अगर