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शेख मखमूर
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उसके सिपाही जान पर खेलनेवाले हैं तो तुम्हारे सिपाही भी सर कटाने के लिए तैयार हैं। हाथों में तेगा मजबूत पकड़ो और खुदा का नाम लेकर दुश्मन पर टूट पड़ो। तुम्हारे तेवर कहे देते हैं कि मैदान तुम्हारा है ।

इस पुरजोश तकरीर ने सरदारों के हौसले उभार दिये। उनकी आँखें लाल हो गयीं, तलवारें पहलू बदलने लगी और कदम बरबस लड़ाई के मैदान की तरफ़ बढ़े। शेख मखमूर ने तब फ़कोरी बाना उतार फेंका, फ़क़ीरी प्याले को सलाम किया और हाथों में वही तलवार और ढाल लेकर जो किसी वक्त मसऊद से छीने गये थे, सरदार नमकखोर के साथ-साथ सिपाहियों और अफ़सरों का दिल बढ़ाते शेरों की तरह विफरता हुआ चला। आधी रात का वक्त था, अमीर के सिपाही अभी मंज़िलें मारे चले आते थे। बेचारे दम भी न लेने पाये थे कि एकाएक सरदार नमकखोर के आ पहुँचने की खबर पायी । होश उड़ गये और हिम्मतें टूट गयीं। मगर अमीर शेर की तरह गरजकर खेमे से बाहर आया और दम के दम में अपनी सारी फ़ौज दुश्मन के मुकाबले में क़तार बाँधकर खड़ी कर दी कि जैसे एक माली था कि आया और इधर-उधर बिखरे हुए फूलों को एक गुलदस्ते में सजा गया।

दोनों फ़ौजें काले-काले पहाड़ों की तरह आमने-सामने खड़ी हैं। और तोपों का आग बरसाना ज्वालामुखी का दृश्य प्रस्तुत कर रहा था। उनकी धनगरज आवाज़ से बला का शोर मच रहा था। यह पहाड़ धीरे-धीरे आगे बढ़ते गये। यकायक वह टकराये और कुछ इस जोर से टकराये कि ज़मीन काँप उठी और घमासान की लड़ाई शुरू हो गयी। मसऊद का तेग़ा इस वक्त एक बला हो रहा था, जिधर पहुँचता लाशों के ढेर लग जाते और सैकड़ों सर उस पर भेंट चढ़ जाते।

पौ फटे तक तेगोयों ही खड़का किये और यों ही खून का दरिया वहता रहा। जब दिन निकला तो लड़ाई का मैदान मौत का बाजार हो रहा था। जिधर निगाह उठती थी, मरे हुओं के सर और हाथ-पैर लहू में तैरते दिखायी देते थे । यकायक शेख मखमूर की कमान से एक तीर बिजली बनकर निकला और अमीर पुरतदवीर की जान के घोंसले पर गिरा और उसके गिरते ही शाही फ़ौज भाग निकली और सरदारी फ़ौज फ़तेह का झण्डा उठाये राजधानी की तरफ बढ़ी।

जब यह जीत की लहर-जैसी फ़ौज शहर की दीवार के अन्दर दाखिल हुई तो शहर के मर्द और औरत, जो बड़ी मुद्दत से गुलामी की सख्तियाँ झेल रहे थे,