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शेख मखमूर
२३
 


मुद्दत से तुम्हारी वर्ची की नोक का वायल हूँ, मेरी किस्मत है कि आज तुम मरहम रखने आयी हो।

मुल्के जन्नतनिशाँ अब आजादी और खुशहाली का घर है। मलिका शेर आफगन को अभी गद्दी पर बैठे साल भर से ज्यादा नहीं गुजरा मगर सल्तनत का कारबार बहुत अच्छी तरह और खूबी से चल रहा है और इस बड़े काम में उसका प्यारा शौहर मसऊद, जो अभी तक फ़कीर मखमूर के नाम से मशहूर है, उसका सलाहकार और मददगार है।

रात का वक्त था, शाही दरबार सजा हुआ था, बड़े-बड़े वजीर अपने पद के अनुसार बैठ हुए थे और नौकर जर्क-बर्क वर्दियाँ पहने हाथ बाँधे खड़े थे कि एक खिदमतगार ने आकर अर्ज की—दोनो जहान की मलिका, एक गरीब औरत बाहर खड़ी है और आपके कदमों का बोझा लेने की गुजारिश करती है। दरबारी चौंके और मलिका ने ताज्जुब-भरे लहजे में कहा—अन्दर हाज़िर करो। खिदमतगार बाहर चला गया और जरा देर में एक बुढ़िया लाठी टेकती हुई आयी और अपनी पिटारी से एक जड़ाऊ ताज निकालकर बोली—तुम लोग इसे ले लो, अब यह मेरे किसी काम का नहीं रहा। मियाँ ने मरते वक्त इसे मसऊद को देकर कहा था कि तुम इसके मालिक हो, मगर अपने जिगर के टुकड़े मसऊद को कहाँ ढूंढू। रोते-रोते अंधी हो गयी, सारी दुनिया की खाक छानी, मगर उसका कहीं पता न लगा। अब जिंदगी से तंग आ गयी हूँ, जीकर क्या करूँगी। यह अमानत मेरे पास है, जिसका जी चाहे ले ले।

दरबार में सन्नाटा छा गया। लोग हैरत के मारे मूरत-से बन गये कि जैसे एक जादूगर था जो उंगली के इशारे से सब का दम बन्द किये हुए था। यकायक मसऊद अपनी जगह से उठा और रोता हुआ जाकर रिन्दा के पैरों पर गिर पड़ा। रिन्दा अपने जिगर के टुकड़े को देखते ही पहचान गयी, उसे छाती से लगा लिया और वह जड़ाऊ ताज उसके सर पर रखकर बोली-साहबो, यही मेरा प्यारा मसऊद और शाहे बामुराद का बेटा है, तुम लोग इसकी रियाया हो, यह ताज इसका है, यह मुल्क इसका है और सारी खिलक्कत इसकी है। आज से वह अपने मुल्क का बादशाह है, अपनी कौम का खादिम।

दरबार में क़यामत का शोर मचने लगा, दरबारी उठे और मसऊद को हाथों