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गुप्त धन
 


जिन्दादिली नाम को न बाकी रही थी। दोस्तों की संगत से भागता और हँसी-मजाक से चिढ़ मालूम होती।

एक रोज शाम के वक्त मैं अपने अंधेरे कमरे में लेटा हुआ कल्पना-लोक की सर कर रहा था कि सामनेवाले मकान से गाने की आवाज़ आयी। आह, क्या आवाज़ थी, तीर की तरह दिल में चुभी जाती थी, स्वर कितना करुण था! इस वक्त मुझे अन्दाजा हुआ कि गाने में क्या असर होता है। तमाम रोंगटे खड़े हो गये, कलेजा मसोसने लगा और दिल पर एक अजीब वेदना-सी छा गयी। आँखों से आंसू वहने लगे। हाय, यह लीला का प्यारा गीत था—

पिया मिलन है कठिन बावरी।

मुझसे ज़ब्त न हो सका, मैं एक उन्माद की-सी दशा में उठा और जाकर सामनेवाले मकान का दरवाजा खटखटाया। मुझे उस वक्त यह चेतना न रही कि एक अजनबी आदमी के मकान पर आकर खड़े हो जाना और उसके एकांत में विघ्न डालना परले दर्जे की असभ्यता है।

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एक बुढ़िया ने दरवाजा खोल दिया और मुझे खड़े देखकर लपकी हुई अन्दर गयी। मैं भी उसके साथ चला गया। देहलीज़ तय करते ही एक बड़े कमरे में पहुँचा। उस पर एक सफ़ेद फर्श बिछा हुआ था। गावतकिये भी रखे थे। दीवारों पर खूबसूरत तसवीरें लटक रही थीं और एक सोलह-सत्रह साल का सुन्दर नौजवान जिसकी अभी मसें भीग रही थीं मसनद के करीब बैठा हुआ हारमोनियम पर गा रहा था। मैं क़सम खा सकता हूँ कि ऐसा सुन्दर स्वस्थ नौजवान मेरी नज़र से कभी नहीं गुजरा। चाल-ढाल से सिख मालूम होता था। मुझे देखते ही चौंक पड़ा और हारमोनियम छोड़कर खड़ा हो गया। शर्म से सिर झुका लिया और कुछ घबराया हुआ-सा नजर आने लगा। मैंने कहा—माफ़ कीजिएगा, मैंने आपको बड़ी तकलीफ़ दी। आप इस फ़न के उस्ताद मालूम होते हैं। खासकर जो चीज़ अभी आप गा रहे थे, वह मुझे पसन्द है।

नौजवान ने अपनी बड़ी-बड़ी आँखों से मेरी तरफ़ देखा और सर नीचा कर लिया और होंठों ही में कुछ अपने नौसिखियेपन की बात कही। मैंने फिर पूछा—आप यहाँ कब से हैं?

नौजवान—तीन महीने के करीब होता है।