पृष्ठ:गुप्त धन 1.pdf/४१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
शोक का पुरुस्कार
२९
 


मैं—आपका शुभ नाम।

नौजवान—मुझे मेहर सिंह कहते हैं।

मैं बैठ गया और बहुत गुस्ताखाना बेतकल्लुफ़ो से मेहर सिंह का हाथ पकड़कर बिठा दिया और फिर माफ़ी माँगी। उस वक्त की बातचीत से मालूम हुआ कि वह पंजाब का रहनेवाला है और यहाँ पढ़ने के लिए आया हुआ है। शायद डाक्टरों ने सलाह दी थी कि पंजाब की आबहवा उत्तके लिए ठीक नहीं है। मैं दिल में तो झेंपा कि एक स्कूल के लड़के के साथ बैठकर ऐसी बेतकल्लुफ़ी से बातें कर रहा हूँ, मगर संगीत के प्रेम ने इस खयाल को रहने न दिया। रस्मी परिचय के बाद मैंने फिर प्रार्थना की कि वही चीज़ छेड़िये । मेहर सिंह ने आँखें नीची करके जवाब दिया कि मैं अभी बिलकुल नौसिखिया हूँ।

मैं—यह तो आप अपनी ज़बान से कहिये ।

मेहर सिंह—(झेंपकर) आप कुछ फ़रमायें, हारमोनियम हाज़िर है ।

मैं—इस फ़न में बिलकुल कोरा हूँ वर्ना आपकी फ़रमाइश जरूर पूरी करता।

इसके बाद मैंने बहुत आग्रह किया मगर मेहर सिंह झेंपता ही रहा। मुझे स्वभावतः शिष्टाचार से घृणा है। हालाँकि इस वक्त मुझे रूखा होने का कोई हक न था मगर जब मैंने देखा कि यह किसी तरह न मानेगा तो ज़रा रुखाई से बोला—खैर जाने दीजिए। मुझे अफ़सोस है कि मैंने आपका बहुत वक्त बर्वाद किया। माफ़ कीजिए। यह कहकर उठ खड़ा हुआ। मेरी रोनी सूरत देखकर शायद मेहर सिंह को उस वक्त तरस आ गया, उसने झेंपते हुए मेरा हाथ पकड़ लिया और बोला—आप तो नाराज हुए जाते हैं।

मैं—मुझे आपसे नाराज़ होने का हक़ हासिल नहीं।

मेहर सिंह—अच्छा बैठ जाइए, मैं आपकी फ़रमाइश पूरी करूँगा। मगर मैं अभी बिलकुल अनाड़ी हूँ।

मैं बैठ गया और मेहर सिंह ने हारमोनियम पर वही गीत अलापना शुरू किया—

पिया मिलन है कठिन बावरी।

कैसी सुरीली तान थी, कैसी मीठी आवाज़, कैसा बेचैन करनेवाला भाव! उसके गले में वह रस था जिसका बयान नहीं हो सकता। मैंने देखा कि गाते-गाते खुद उसकी आँखों में आँसू भर आये। मुझ पर इस वक्त एक मोहक सपने की-सी दशा छायी हुई थी। एक बहुत मीठा, नाजुक, दर्दनाक असर दिल पर हो रहा था