३८ | गुप्त धन |
आँखें तरस रही हैं, कब तुझे देखूगी। क्रिसमस करीब है, मुझे क्या, जब तक जिन्दा हूं,तेरी हूं ।
तुम्हारी
मैग्डलीन
३
मैग्डलीन का घर स्विट्जरलैण्ड में था। वह एक समृद्ध व्यापारी की बेटी थी और अनिन्द्य सुन्दरी। आन्तरिक सौंदर्य में भी उसका जोड़ मिलना मुश्किल था। कितने ही अमीर और रईस लोग उसका पागलपन सर में रखते थे, मगर वह किसी को कुछ खयाल में न लाती थी। मैजिनी जब इटली से भागा तो स्विट्जरलैण्ड में आकर शरण ली। मैंग्डलीन उस वक्त भोली-भाली जवानी की गोद में खेल रही थी। मैजिनी की हिम्मत और कुर्बानियों की तारीफें पहले ही सुन चुकी थी। कभी-कभी अपनी माँ के साथ उसके यहाँ आने लगी और आपस का मिलना-जुलना जैसे-जैसे बढ़ा और मैजिनी के भीतरी सौन्दर्य का ज्यों-ज्यों उसके दिल पर गहरा असर होता गया, उसकी मुहब्बत उसके दिल में पक्की होती गयी। यहां तक कि उसने एक दिन खुद लाज-शर्म को किनारे रखकर मैज़िनी के पैरों पर सिर रख दिया और कहा—मुझे अपनी सेवा में स्वीकार कर लीजिए।
मैजिनी पर भी उस वक्त जवानी छाई हुई थी, देश की चिन्ताओं ने अभी दिल को ठंडा नहीं किया था। जवानी की पुरजोश उम्मीदें दिल में लहरें मार रही थीं, मगर उसने संकल्प कर लिया था कि मैं देश और जाति पर अपने को न्योछावर कर दूंगा। और इस संकल्प पर कायम रहा। एक ऐसी सुन्दर युवती के नाजुक-नाजुक होठों से ऐसी दरख्वास्त सुनकर रद कर देना मैजिनी ही जैसे संकल्प के पक्के, हियाव के पूरे आदमी का काम था।
मैग्डलीन भीगी-भीगी आँखें लिये उठी मगर निराश न हुई थी। इस असफलता ने उसके दिल में प्रेम की आग और भी तेज कर दी और वो आज मैजिनी को स्विट्ज़रलैंड छोड़े कई साल गुज़रे मगर वफ़ादार मैग्डलीन अभी तक मैजिनी को नहीं भूली। दिनों के साथ उसकी मुहब्बत और भी गाढ़ी और सच्ची होती जाती है।
मैजिनी खत पढ़ चुका तो एक लम्बी आह भरकर रफ़ेती से बोला—देखा मैग्डलीन क्या कहती है ?