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सांसारिक प्रेम और देश-प्रेम
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मैजिनी के पीछे-पीछे उसकी निगाह से दूर घूमा करती मगर उसे आश्वस्त और सफलता से प्रसन्न देखकर उसे छेड़ने का साहस न करती थी। आखिरकार जब फिर उस पर असफलताओं का वार हुआ और वह फिर दुनिया में बेकस और बेबस हो गया तो मैग्डलीन ने समझा, अब इसको किसी हमदर्द की ज़रूरत है। और पाठक देख चुके हैं जिस तरह वह मैज़िनी से मिली।

मैजिनी रोम से फिर इंगलिस्तान पहुंचा और यहाँ एक अरसे तक रहा। सन् १८७० में उसे खबर मिली की सिसली की रिआया बागवाद पर आमादा है और उन्हें मैदाने जंग में लाने के लिए एक उभारनेवाले की जरूरत है। बस वह फ़ौरन सिसली पहुँचा मगर उसके जाने के पहले शाही फौज ने बागियों को दबा दिया था। मैज़िनी जहाज़ से उतरते ही गिरफ्तार करके एक कैदखाने में डाल दिया गया। मगर चूंकि अब वह बहुत बुड्ढा हो गया था, शाही हुक्काम ने इस डर से कि कहीं वह कैद की तकलीफों से मर जाय तो जनता को सन्देह होगा कि बादशाह की प्रेरणा से वह क़ल कर डाला गया, उसे रिहा कर दिया। निराश और टूटा हुआ दिल लिये मैजिनी फिर स्विट्ज़रलैण्ड की तरफ रवाना हुआ। उसकी ज़िन्दगी की तमाम उम्मीदें खाक में मिल गयीं। इसमें शक नहीं कि इटली के एकताबद्ध हो जाने के दिन बहुत पास आ गये थे मगर उसकी हुकूमत की हालत उससे हरगिज बेहतर न श्री जैसी आस्ट्रिया या नेपल्स के शासन-काल में । अन्तर यह था कि पहले, वह एक दूसरी क़ौम की ज्यादतियों से परेशान थे, अब अपनी क़ौम के हाथों ! इन निरन्तर असफलताओं ने दृढवती मंज़िनी के दिल में यह खयाल पैदा किया कि शायद जनता की राजनीतिक शिक्षा इस हद तक नहीं हुई है, कि वह अपने लिए एक प्रजातांत्रिक शासन-व्यवस्था की बुनियाद डाल सके और इसी नियत से वह स्विट्ज़रलैण्ड जा रहा था कि वहाँ से एक जबर्दस्त कौमी अखबार निकाले क्योंकि इटली में उसे अपने विचारों को फैलाने की इजाजत न थी। वह रात भर नाम बदलकर रोम में ठहरा। फिर वहाँ से अपनी जन्मभूमि जिनेवा में आया और अपनी नेक मां की कब्र पर फूल चढ़ाये। इसके बाद स्विट्जरलैण्ड की तरफ़ चला और साल भर तक कुछ विश्वसनीय मित्रों की सहायता से अखबार निकालता रहा। मगर निरन्तर चिन्ता और कष्टों ने उसे बिलकुल कमजोर कर दिया था। सन् १८७० में वह सेहत के खयाल से इंगलिस्तान आ रहा था कि आल्प्स पर्वत की तलहटी में निमोनिया की बीमारी ने उसके जीवन का अन्त कर दिया