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गुप्त धन
 

मुँह खोलकर ठंडी हवा से ज़बान की जलन बुझाने लगे। जब होश ठीक हुए तो हलवाई को हजारों गालियाँ सुनायीं, इस पर भी लोग खूब हँसे । खुशी के मौकों पर ऐसी शरारतें अक्सर हुआ करती हैं और इन्हें लोग मुआफ़ी के काविल समझते हैं क्योंकि वह खौलती हुई हाँडी के उबाल हैं।

रात के नौ बजे संगीतशाला में जमघट हुआ। सारा महल नीचे से ऊपर तक रंग-बिरंगी हाँडियों और फ़ानूसों से जगमगा रहा था। अन्दर झाड़ों की बहार थी। एक बाकमाल कारीगर ने रंगशाला के बीचोंबीच अधर में लटका हुआ एक फ़व्वारा लगाया था जिसके सूराखों से खस और केवड़ा, गुलाब' और सन्दल का अरक़ हलकी फुहारों में बरस रहा था। महफ़िल में अम्बर की बौछार करनेवाली तरावट फैली हुई थी। खुशी अपनी सखियों सहेलियों के साथ खुशियाँ मना रही थी।

दस बजे महाराजा रनजीतसिंह तशरीफ़ लाये। उनके बदन पर तंज़ेब की एक सफेद अचकन थी और सिर पर तिरछी पगड़ी बँधी हुई थी। जिस तरह सूरज क्षितिज की रंगीनियों से पाक रहकर अपनी पूरी रोशनी दिखा सकता है उसी तरह हीरे और जवाहरात, दीवा और हरीर की पुरतकल्लुफ़ सजावट से मुक्त रहकर महाराजा रनजीतसिंह का प्रताप पूरी तेजी के साथ चमक रहा था। चन्द नामी शायरों ने महाराज की शान में इसी मौत के लिए क़सीदे कहे थे। मगर उपस्थित लोगों के चेहरों से उनके दिलों में जोश खाता हुआ संगीत-प्रेम देखकर महाराज ने गाना शुरू करने का हुक्म दिया। तबले पर थाप पड़ी, साज़िन्दों ने सुर मिलाया, नींद से झपकती हुई आँखें खुल गयीं और गाना शुरू हो गया।

उस शाही महफ़िल में रात भर मीठे-मीठे गानों की बौछार होती रही। पीलू और पिरच, देस और बिहाग के मदभरे झोंके चलते रहे। सुन्दरी ने बारी- बारी से अपना कमाल दिखाया। किसी की नाजू-भरी अदाएँ दिलों में खुब गयीं, किसी का थिरकना क़त्लेआम कर गया, किसी की रसीली तानों पर वाह-वाह मच गयी। ऐसी तबीयतें बहुत कम थीं जिन्होंने सच्चाई के साथ गाने का पवित्र आनन्द उठाया हो।

१. रेशमी कपड़ों के नाम ।