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गुप्त धन
 


वृंदा के चले जाने के बाद उसका फूल-सा बच्चा राजा उठा और आँखें मलता हुआ बोला—अम्माँ कहाँ है?

प्रेमसिंह ने उसे गोद में लेकर कहा—अम्माँ मिठाई लेने गयी है।

राजा खुश हो गया, बाहर जाकर लड़कों के साथ खेलने लगा। मगर कुछ देर के बाद फिर बोला—अम्माँ मिठाई।

प्रेमसिंह ने मिठाई लाकर दी। मगर राजा रो-रोकर कहता रहा, अम्माँ मिठाई। वह शायद समझा था कि अम्माँ की मिठाई इस मिठाई से ज्यादा मीठी होगी।

आखिर प्रेमसिंह ने उसे कंधे पर चढ़ा लिया और दोपहर तक खेतों में घूमता रहा। राजा कुछ देर तक चुप रहता और फिर चौंककर पूछने लगता—अम्माँ कहाँ है?

बूढ़े सिपाही के पास इस सवाल का कोई जवाब न था। वह बच्चे के पास से एक पल को भी कहीं न जाता और उसे बातों में लगाये रहता कि कहीं वह फिर न पूछ वैठे, अम्मा कहाँ है? बच्चों की स्मरणशक्ति कमजोर होती है। राजा कई दिनों तक बेक़रार रहा, आखिर धीरे-धीरे माँ की याद उसके दिल से मिट गयी।

इस तरह तीन महीने गुज़र गये। एक रोज शाम के वक्त राजा अपने दरवाजे पर खेल रहा था कि वृन्दा आती हुई दिखायी दी। राजा ने उसकी तरफ़ गौर से देखा, जरा झिझका, फिर दौड़कर उसकी टाँगों से लिपट गया और बोला—अम्माँ, आयी, अम्माँ आयी।

वृन्दा की आँखों से आंसू जारी हो गये। उसने राजा को गोद में उठा लिया और कलेजे से लगाकर बोली—वेटा, अभी मैं नहीं आयी, फिर कभी आऊँगी।

राजा इसका मतलब न समझा। वह उसका हाथ पकड़कर खींचता हुआ घर की तरफ़ चला। माँ की ममता वृन्दा को दरवाजे तक ले गयी। मगर चौखट से आगे न ले जा सकी। राजा ने बहुत खींचा मगर वह आगे न बढ़ी। तब राजा की बड़ी-बड़ी आँखों में आँसू भर आये। उसके होंठ फैल गये और वह रोने लगा।

प्रेमसिंह उसका रोना सुनकर बाहर निकल आया, देखा तो वृन्दा खड़ी है। चौंककर बोला—वृन्दा। मगर वृन्दा कुछ जवाब न दे सकी।

प्रेमसिंह ने फिर कहा—बाहर क्यों खड़ी हो, अन्दर आओ। अब तक कहाँ थीं?