पृष्ठ:गुप्त धन 1.pdf/८९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
आल्हा
७७
 

आल्हा सर नीचा किये इन्हीं खयालों में गोते खा रहा था। यह उसके लिए परीक्षा की घड़ी थी जिसमें सफल हो जाने पर उसका भविष्य निर्भर था।

मगर माहिल के लिए यह मौका उसके धीरज' की कम परीक्षा लेनेवाला न था। वह दिन अव आ गया जिसके इन्तजार में कभी आँखें नहीं थकीं। खुशियों की यह बाढ़ अब संयम की लोहे की दीवार को काटती जाती थी। सिद्ध योगी पर दुर्बल मनुष्य' की विजय होती जाती थी। एकाएक परमाल ने आल्हा से पूछा--किस' दुविधे में हो? क्या नहीं देना चाहते ?

आल्हा ने राजा से आँखें मिलाकर कहा-~जी नहीं।

परमाल को तैश आ गया, कड़ककर बोला-क्यों?

आल्हा ने अविचल मन से उत्तर दिया-यह राजपूतों का धर्म नहीं है।

परमाल-क्या मेरे एहसानों का यही बदला है ? तुम जानते हो, पहले तुम क्या थे और अब क्या हो?

आल्हा-जी हाँ, जानता हूँ।

परमाल--तुम्हें मैंने बनाया है और मैं ही बिगाड़ सकता हूँ।

आल्हा से अब सब्र न हो सका, उसकी आँखें लाल हो गयीं और त्योरियों पर बल पड़ गये। तेज़ लहजे में बोला-~-महाराज, आपने मेरे ऊपर जो एहसान किये, उनका मैं हमेशा कृतज्ञ रहूँगा। क्षत्रिय कभी एहसान नहीं भूलता। मगर आपने मेरे ऊपर एहसान किये हैं, तो मैंने भी जी तोड़कर आपकी सेवा की है। सिर्फ नौकरी और नमक का हक अदा करने का भावः मुझमें वह निष्ठा और गर्मी नहीं पैदा कर सकता जिसका मैं बार-बार परिचय दे चुका हूँ। मगर खैर, अब मुझे विश्वास हो गया कि इस दरबार में मेरा गुजर न होगा। मेरा आखिरी सलाम कबूल हो और अपनी नादानी से मैंने जो कुछ भूल की है. वह माफ़ की जाय। .माहिल की ओर देखकर उसने कहा----मामा जी, आज से मेरे और आपके बीच खून का रिश्ता टूटता है। आप मेरे खून के प्यासे हैं तो मैं भी आपकी जान का दुश्मन हूँ।

आल्हा की माँ का नाम देवल देवी था। उसकी गिनती उन हौसलेवाली उच्च-विचार स्त्रियों में है जिन्होंने हिन्दोस्तान के पिछले कारनामों को इतना स्पृहणीय बना दिया है। उस अँधेरे युग में भी जब कि आपसी फूट और बैर की एक भयानक बाढ़ मुल्क में आ पहुंची थी, हिन्दोस्तान में ऐसी-ऐसी देवियाँ पैदा हुई जो