पृष्ठ:गुप्त धन 1.pdf/९०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
७८
गुप्त धन
 

इतिहास के अँधेरे से अँधेरे पन्नों को भी ज्योतित कर सकती हैं। देवल देवी ने सुना कि आल्हा ने अपनी आन को रखने के लिए क्या किया तो उसकी आँखों में आँसू भर आये। उसने दोनों भाइयों को गले लगाकर कहा-बेटा तुमने वही किया जो राजपूतों का धर्म था। मैं बड़ी भाग्यशालिनी हूँ कि तुम जैसे दो बात की लाज रखनेवाले बेटे पाये हैं!

उसी रोज दोनों भाइयों ने महोबा से कूच कर दिया। अपने साथ अपनी तल- वार और घोड़ों के सिवा और कुछ न लिया। माल-असबाब सब वहीं छोड़ दिये। सिपाही की दौलत और इज्जत सब कुछ उसकी तलवार है। जिसके पास वीरता की सम्पत्ति है, उसे दूसरी किसी सम्पत्ति की ज़रूरत नहीं।

बरसात के दिन थे, नदी-नाले उमड़े हुए थे। इन्द्र की उदारताओं से मालामाल होकर ज़मीन फूली नहीं समाती थी। पेड़ों पर मोरों की रसीली झनकारें सुनायी देती थीं और खेतों में निश्चिन्तता की शराब से मतवाले किसान मल्हार की तानें अलाप रहे थे। पहाड़ियों की घनी हरियावल, पानी की दर्पन-जैसी सतह और जंगली बेल-बूटों के वनाव-संवार से प्रकृति पर एक यौवन बरस रहा था। मैदानों की ठंडी-ठंडी मस्त हवा, जंगली फूलों की मीठी-मीठी, सुहानी, आत्मा को उल्लास देनेवाली महक और खेतों की लहराती हुई रंग-बिरंग उपज ने दिलों में आरजुओं का एक तूफान उठा दिया था। ऐसे मुबारक मौसम में आल्हा ने महोबा को आखिरी सलाम किया। दोनों भाइयों की आँखें रोते-रोते लाल हो गयी थी क्योंकि आज उनसे उनका देश छूट रहा था। इन्हीं गलियों में उन्होंने घुटनों के बल चलना सीखा था, इन्हीं तालाबों में काग़ज़ की नावें चलायी थीं, यहीं जबानी की बेफ़िकियों के मजे लूटे थे, इनसे अब हमेशा के लिए नाता टूटता था। दोनों भाई आगे बढ़ते जाते थे, मगर बहुत धीरे-धीरे। यह खयाल था कि शायद परमाल ने रूठनेवालों को मनाने के लिए अपना कोई भरोसे का आदमी भेजा होगा। घोड़ों को सम्हाले हुए थे, मगर जब महोबे की पहाड़ियों का आखिरी निशान आँखों से ओझल हो गया तो उम्मीद की आखिरी झलक भी गायब हो गयी। उन्होंने जिनका कोई देश न था एक ठंडी साँस ली और घोड़े बढ़ा दिये। उनके निर्वासन का समाचार बहुत जल्द चारों तरफ़ फैल गया। उनके लिए हर दरबार में जगह थी, चारों तरफ़ से राजाओं के संदेश आने लगे। कन्नौज के राजा जयचन्द ने अपने राजकुमार को उनसे मिलने के लिए भेजा। संदेशों से जो काम न निकला वह इस मुलाकात ने पूरा कर दिया। राजकुमार की खातिरदारियाँ और आवभगत दोनों भाइयों को कन्नौज खींच ले