पृष्ठ:गुप्त धन 1.pdf/९३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
आल्हा
८१
 

है। बड़ी मुश्किलों से एक महीने की मोहलत ली गयी है और मुझे राजा परमाल ने तुम्हारे पास भेजा है। इस मुसीवत के वक्त हमारा कोई मददगार नहीं है, कोई ऐसा नहीं है जो हमारी हिम्मत बँधाये। जब से तुमने महोबे से नाता तोड़ा है तब से राजा परमाल के होंठों पर हँसी नहीं आयी। जिस परमाल को उदास देखकर तुम बेचैन हो जाते थे उसी परमाल की आँखें महीनों से नींद को तरसती हैं। रानी मलिनहा, जिसकी गोद में तुम खेले हो, रात-दिन तुम्हारी याद में रोती रहती है। वह अपने झरोखे से कन्नौज की तरफ आँखें लगाये तुम्हारी राह देखा करती है। ऐ बनाफर वंश के सपूतो! चन्देलों की नाव अब डूब रही है। चन्देलों का नाम अब मिठा जाता है। अव मौका है कि तुम तलवारें हाथ में लो। अगर इस मौके पर तुमने डूबती हुई नाव को न सम्हाला तो तुम्हें हमेशा के लिए पछताना पड़ेगा, क्योंकि इस नाम के साथ तुम्हारा और तुम्हारे नामी बाप का नाम भी डूब जायगा।

आल्हा ने रूखेपन से जबाब दिया----हमें इसकी अब कुछ परवाह नहीं है। हमारा और हमारे बाप का नाम तो उसी दिन डूब गया, जब हम बेकसूर महोबे से निकाल दिये गये। महोबा मिट्टी में मिल जाय, चन्देलों का चिराग गुल हो जाय, अब हमें ज़रा भी परवाह नहीं है। क्या हमारी सेवाओं का यही पुरस्कार था जो हमको दिया गया? हमारे बाप ने महोवे पर अपने प्राण न्यौछावर कर दिये, हमने गोंडों को हराया और चन्देलों को देवगढ़ का मालिक बना दिया। हमने यादवों से लोहा लिया और कठियार के मैदान में चन्देलों का झंडा गाड़ दिया। मैंने इन्हीं हाथों से कछवाहों की बढ़ती हुई लहर को रोका गया का मैदान हमी ने जीता, रीवा का घमण्ड हमी ने तोड़ा। मैंने ही मेवात से खिराज लिया। हमने यह सब कुछ किया और इसका हमको यह पुरस्कार दिया गया है ? मेरे बाप ने दस राजाओं को गुलामी का तौक पहनाया। मैंने परमाल की सेवा में सात बार प्राणलेवा ज़रूम खाये, तीन बार मौत के मुंह से निकल आया। मैंने चालीस लड़ाइयाँ लड़ी और कभी हारकर न आया। ऊदल ने सात खूनी मार्के जीते। हमने चन्देलों की बहादुरी का डंका बजा दिया। चन्देलों का नाम हमने आसमान तक पहुंचा दिया और इसका यह पुरस्कार हमको मिला है ? परमाल अब क्यों उसी दगाबाज़ माहिल को अपनी मदद के लिए नहीं बुलाते जिसको खुश करने के लिए मेरा देशनिकाला हुआ था!

जगना ने जवाब दिया-आल्हा! यह राजपूतों की बातें नहीं हैं। तुम्हारे