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गुप्त धन
 

बाप ने जिस राज पर प्राण न्यौछावर कर दिये वही राज अब दुश्मन के पाँव तले रौंदा जा रहा है। उसी बाप के बेटे होकर भी क्या तुम्हारे खून में जोश नहीं आता? वह राजपूत जो अपने मुसीबत में पड़े हुए राजा को छोड़ता है, उसके लिए नरक की आग के सिवा और कोई जगह नहीं है। तुम्हारी मातृभूमि पर वर्बादी की घटा छायी हुई है। तुम्हारी माएँ और बहनें दुश्मनों की आबरू लूटनेवाली निगाहों का निशाना बन रही हैं, क्या अब भी तुम्हारे खून में जोश नहीं आता? अपने देश की यह दुर्गत देखकर भी तुम कन्नौज में चैन की नींद सो सकते हो?

देवल देवी को जगना के आने की खबर हुई। उसने फौरन आल्हा को बुलाकर कहा-बेटा, पिछली बातें भूल जाओ और आज ही महोवे चलने की तैयारी करो।

आल्हा कुछ जवाब न दे सका, मगर अदल झुंझलाकर बोला- हम अब महोबे नहीं जा सकते। क्या तुम्हें वह दिन भूल गये जब हम कुत्तों की तरह महोबे से निकाल दिये गये? महोबा डूबे या रहे, हमारा जी उससे भर गया, अब उसको देखने की इच्छा नहीं है। अब कन्नौज हमारी मातृभूमि है।

राजपूतनी वेटे की जबान से यह पाप की बात न सुन सकी, तैश में आकर बोली-ऊदल, तुझे ऐसी बातें मुंह से निकालते हुए शर्म नहीं आती? काश ईश्वर मुझे बाँझ ही रखता कि ऐसे वेटों की माँ न बनती। क्या इन्हीं बनाफर वंश के नाम पर कलंक लगानेवालों के लिए मैंने गर्भ की पीड़ा सही थी। नालायक़ो, मेरे सामने से दूर हो जाओ। मुझे अपना मुंह न दिखाओ। तुम जसराज के बेटे नहीं हो, तुम जिसकी रान से पैदा हुए हो वह जसराज नहीं हो सकता।

यह ममन्तिक चोट थी। शर्म से दोनों भाइयों के माथे पर पसीना आ गया। दोनों उठ खड़े हुए और बोले--माता, अब बस करो, हम ज्यादा नहीं सुन सकते, हम आज ही महोबे जायेंगे और राजा परमाल की खिदमत में अपना खून बहायेंगे। हम रणक्षेत्र में अपनी तलवारों की चमक से अपने बाप का नाम रोशन करेंगे। हम चौहान के मुकाबिले में अपनी बहादुरी के जौहर दिखायेंगे और देवलदेवी के बेटों का नाम अमर कर देंगे।

दोनों भाई कन्नौज से चले, देवल भी साथ थी। जब यह रूठनेवाले अपनी मातृभूमि में पहुँचे तो सूखे धानों में पानी पड़ गया, टूटी हुई हिम्मतें बँध गयीं। एक लाख चन्देल इन वीरों की अगवानी करने के लिए खड़े थे। बहुत दिनों के बाद वह