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गुप्त धन
 

अक्षयकुमार समझ गये कि अब बहस मुवाहिसे की ज़रूरत आ गयी, सम्हल बैठे और बोले--मेरी जान, बी० ए० के इम्तहान में पास होना कोई गैर-मामूली बात नहीं है, हजारों नौजवान हर साल पास होते रहते हैं। अगर मेरा भाई होता तो मैं सिर्फ़ उसकी पीठ ठोंककर कहता कि शाबाश खूब मेहनत की। मुझे ड्रामा खेलने का खयाल भी न पैदा होता । डाक्टर साहब तो समझदार आदमी हैं, उन्हें क्या सूझी!

हेमवती--मुझे तो जाना ही पड़ेगा।

अक्षयकुमार क्यों, क्या वादा कर लिया है ?

हेमवती--डाक्टर साहब की वीवी खुद आयी थीं।

अक्षयकुमार-तो मेरी जान, तुम भी कभी उनके घर चली जाना, परसों जाने की क्या ज़रूरत है?

हेमवती ----अब बता ही दूं, मुझे नायिका का पार्ट दिया गया है और मैंने उसे मंजूर कर लिया है।

यह कहकर हेमवती ने गर्व से अपने पति की तरफ़ देखा, मगर अक्षयकुमार को इस खबर से बहुत खुशी नहीं हुई। इससे पहले दो बार हेमवती शकुन्तला बन चुकी थी। इन दोनों मौकों पर बाबू साहब को काफ़ी खर्च करना पड़ा था। उन्हें डर हुआ कि अब' की हफ्ते में फिर घोष कम्पनी दो सौ का बिल पेश करेगी। और इस बात की सख्त जरूरत थी कि अभी से रोक-थाम की जाय । उन्होंने बहुत मुलायमियत से हेमवती का हाथ पकड़ लिया और बहुत मीठे और मुहब्बत में लिपटे हुए लहजे में बोले-~-प्यारी, यह बला फिर तुमने अपने सर ले ली। अपनी तकलीफ़ और परेशानी का बिलकुल खयाल नहीं किया। यह भी नहीं सोचा कि तुम्हारी परेशानी तुम्हारे इस प्रेमी को कितना परेशान करती है। मेरी जान, यह जलसे नैतिक दृष्टि से बहुत आपत्तिजनक होते हैं। इन्हीं मौकों पर दिलों में ईयां के बीज बोये जाते हैं, यहीं पीठ पीछे बुराई करने की आदत पड़ती है और यहीं तानेबाज़ी और नोकझोंक की मश्क होती है। फलां लेडी हसीन है, इसलिए उसकी दूसरी वहनों का फ़र्ज़ है कि उससे जलें। मेरी जान, ईश्वर न करे कि कोई डाही बने, मगर डाह करने के योग्य बनना तो अपने अख्तियार की बात नहीं। मुझे भय है कि तुम्हारा दाहक सौन्दर्य कितने ही दिलों को जलाकर राख कर देगा। प्यारी हेमू, मुझे दुख है कि तुमने मुझसे पूछे बगैर यह निमन्त्रण स्वीकार कर लिया। मुझे विश्वास