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गोदान : 101
 

'कोई दवाई नहीं खाता, तो क्या किया जाय। उसके लेखे तो सारे बैद, डाक्टर, हकीम अनाड़ी हैं। भगवान के पास जितनी अक्कल थी, वह उसके और उसकी घरवाली के हिस्से पड़ गई।'

होरी ने चिंता से कहा- यही तो बुराई है उसमें। अपने सामने किसी को गिनता ही नहीं। और चिढ़ने तो बीमारी में सभी हो जाते हैं। तुम्हें याद है कि नहीं, जब तुम्हें इंफिजा हो गया था, तो दवाई उठाकर फेंक देते थे। मैं तुम्हारे दोनों हाथ पकड़ता था, जब तुम्हारी भाभी तुम्हारे मुंह में दबाई डालती थीं। उस पर तुम उसे हजारों गालियां देते थे।

'हां दादा, भला वह बात भूल सकता हूं? तुमने इतना न किया होता, तो तुमसे लड़ने के लिए कैसे बचा रहता।'

होरी को ऐसा मालूम हुआ कि हीरा का स्वर भारी हो गया है। उसका गला भी भर आया।

'बेटा, लड़ाई-झगड़ा तो जिंदगी का धरम है। इससे जो अपने हैं, वह पराए थोड़े ही हो जाते हैं, जब घर में चार आदमी रहते हैं, तभी तो लड़ाई-झगड़े भी होते हैं, जिसके कोई है। ही नहीं, उससे कौन लड़ाई करेगा?

दोनों ने साथ चिलप पी। तब हीरा अपने घर गया, होरी अंदर भोजन करने चला।

धनिया रोष से बोली-देखी अपने सपूत की लीला? इतनी रात गई और अभी उसे अपने सैल से छुट्टी नहीं मिली। मैं सब जानती हूं। मुझको सारा पता मिल गया है। भोला की वह रांड़ लड़की नहीं है, झुनिया। उसी के घर में पड़ा रहता है।

होरी के कानों में भी इस बात की भनक पड़ी थी, पर उसे विश्वास न आया था। गोबर बेचारा इन बातों को क्या जाने।

बोला-किसने कहा तुमसे?

धनिया प्रचंड हो गई-तुमसे छिपी होगी और तो सभी जगह चर्चा चल रही है। यह है, भुग्गा, वह बहत्तर घाट का पानी पिए हुए। इसे उंगलियों पर नचा रही है, और यह समझता है, वह इस पर जान देती है। तुम उसे समझा दो, नहीं कोई ऐसी-वैसी हो गई, तो कहीं के न रहोगे।

होरी का दिल उमंग पर था। चुहल की सूझ-झुनिया देखने-सुनने पे तो बुरी नहीं है। उसी से कर ले सगाई। ऐसी सस्ती मेहरिया और कहां मिली जाती है?

धनिया को यह चुहल तीर-सा लगा झुनिया इस घर में आये, तो मुंह झुलस रांड़ का। गोबर की चहेती है, तो उसे लेकर जहां चाहे रहे?

'और जो गोबर इसी घर में लाए?

‘तो यह दोनों लड़कियां किसके गले बांधोगे? फिर बिरादरी में तुम्हें कौन पूछेगा, कोई द्वार पर खड़ा तक तो होगा नहीं।'

'उसे इसकी क्या परवाह।'

'इस तरह नहीं छोड़ूंगी लाला को। मर-मर के मैंने पाला है और झुनिया आकर राज करेगी। मुंह में आग लगा दूंगी रांड़ के।'

सहसा गोबर आ के घबड़ाई हुई आवाज में बोला-दादा,सुन्दरिया को क्या हो गया? क्या काले नाग ने छू लिया? वह तो पड़ी तड़प रही है।

होरी चौके में जा चुका था। थाली सामने छोड़कर बाहर निकल आया और बोला--क्या असगुन मुंह से निकालते हो। अभी तो मैं देखे आ रहा हूं। लेटी थी।