पृष्ठ:गोदान.pdf/१०४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
104 : प्रेमचंद रचनावली-6
 

नौ

नौ

प्रातःकाल होरी के घर में एक पूरा हंगामा हो गया। होरी धनिया को मार रहा था। धनिया उसे गालियां दे रही थी। दोनों लड़कियां बाप के पांवों से लिपटी चिल्ला रही थीं और गोबर मां को बचा रहा था। बार-बार होरी का हाथ पकड़कर पीछे ढकेल देता, पर ज्योंही धनिया के मुंह से कोई गाली निकल जाती, होरी अपने हाथ छुड़ाकर उसे दो-चार घूंसे और लात जमा देता। उसका बूढ़ा क्रोध जैसे किसी गुप्त संचित शक्ति को निकाल लाया। हो। सारे गांव में हलचल पड़ गई। लोग समझाने के बहाने तमाशा देखने आ पहुंचे। सोभा लाठी टेकता आ खड़ा हुआ। दातादीन ने डांटा-यह क्या है होरी, तुम बावले हो गए हो क्या? कोई इस तरह घर की लच्छमी पर हाथ छोड़ता है। तुम्हें तो यह रोग न था। क्या हीरा की छूत तुम्हें भी लग गई?

होरी ने पालागन करके कहा-महाराज, तुम इस बखत न बोलो। मैं आज इसकी बान छुड़ाकर तब दम लूंगा। मैं जितना ही तरह देता हूं, उतना ही यह सिर चढ़ती जाती है।

धनिया सजल क्रोध में बोली-महाराज, तुम गवाह रहना। मैं आज इसे और उसके हत्यारे भाई को जेहल भेजवाकर तब पानी पिऊंगी : इसके भाई ने गाय को माहुर खिलाकर मार डाला। अब तो मैं थाने में रपट लिखाने जा रही हूं, तो यह हत्यारा मुझे मारता है। इसके पीछे अपनी जिंदगी चौपट कर दी, उसका यह इनाम दे रहा है।

होरी ने दांत पीसकर और आंखें निकालकर कहा-फिर वही बात मुंह से निकाली। तूने देखा था हीरा को माहुर खिलाते ?

'तू कसम खा जा कि तूने हीरा को गाय की नांद के पास खड़े नहीं देखा?

'हां, मैंने नहीं देखा, कसम खाता हूं।

'बेटे के माथे पर हाथ रखके कसम खा ।

होरी ने गोबर के माथे पर कांपता हुआ हाथ रखकर कांपते हुए स्वर में कहा-मैं बेटे की कसम खाता हूं कि मैंने हीरा को नांद के पास नहीं देखा।

धनिया ने जमीन पर थूककर कहा-धुडी है तेरी झुठाई पर। तूने खुद मुझसे कहा कि हीरा चोरों की तरह नांद के पास खड़ा था। और अब भाई के पच्छ में झूठ बोलता है। थुड़ी है । अगर मेरे बेटे का बाल भी बाका हुआ, तो घर में आग लगा दूंगी। सारी गृहस्थी में आग लगा दूंगी। भगवान, आदमी मुंह से बात कहकर इतनी बेसरमी से मुकर जाता है।

होरी पांव पटककर बोला-धनिया, गुस्सा मत दिला, नहीं बुरा होग।

'मार तो रहा है, और मार ले। जो, तू अपने बाप का बेटा होगा तो आज मुझे मारकर तब पानी पिएगा। पापी ने मारते-मारते मेरा भुरकस निकाल लिया, फिर भी इसका जी नहीं भरा। मुझे मारकर समझता है, मैं बड़ा वीर हूं। भाइयों के सामने भीगी बिल्ली बन जाता है, पापी कहीं का, हत्यारा ।'

फिर वह बैन कहकर रोने लगी—इस घर में आकर उसने क्या नहीं झेला, किस-किस तरह, पेट-तन नहीं काटा, किस तरह एक-एक लत्ते को तरसी, किस तरह एक-एक पैसा प्राणों की तरह संचा, किस तरह घर-भर को खिलाकर आप पानी पीकर सो रही। और आज उन सारे बलिदानों का यह पुरस्कार। भगवान् बैठे यह अन्याय देख रहे हैं और उसकी