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गोदान : 105
 


रक्षा को नहीं दौड़ते। गज की और द्रौपदी की रक्षा करने बैकुंठ से दौड़े थे। आज क्यों नींद में सोए हुए हैं?

जनमत धीरे-धीरे धनिया की ओर आने लगा। इसमें अब किसी को संदेह नहीं रहा कि हीरा ने ही गाय को जहर दिया। होरी ने बिलकुल झूठी कसम खाई है, इसका भी लोगों को विश्वास हो गया। गोबर को भी बाप की इस झूठी कसम और उसके फलस्वरूप आने वाली विपत्ति की शंका ने होरी के विरुद्ध कर दिया। उस पर जो दातादीन ने डांट बताई, तो होरी परास्त हो गया। चुपके से बाहर चला गया। सत्य ने विजय पाई।

दातादीन ने सोभा से पूछा- तुम कुछ जानते हो सोभा, क्या बात हुई?

सोभा जमीन पर लेटा हुआ बोला-मैं तो महाराज, आठ दिन से बाहर नहीं निकला। होरी दादा कभी-कभी जाकर कुछ दे आते हैं, उसी से काम चलता है। रात भी वह मेरे पास गए थे। किसने क्या किया, मैं कुछ नहीं जानता। हां, कल सांझ को हीरा मेरे घर खुरपी मांगने गया था। कहता था, एक जड़ी खोदना है। फिर तब से मेरी उससे भेंट नहीं हुई।

धनिया इतनी शह पाकर बोली-पंडित दादा, वह उसी का काम है। सोभा के घर से खुरपी मांगकर लाया और कोई जड़ी खोदकर गाय को खिला दी। उस रात को जो झगड़ा हुआ। था, उसी दिन से वह खार खाए बैठा था।

दातादीन बोले-यह बात साबित हो गई, तो उसे हत्या लगेगी। पुलिस कुछ करे या न करे, धरम तो बिना दंड दिए न रहेगा। चली तो जा रुपिया, हीरा को बुला ला। कहना, पंडित दादा बुला रहे हैं। अगर उसने हत्या नहीं की है, तो गंगाजली उठा ले और चौरे पर चढ़कर कसम खाए।

धनिया बोली-महाराज, उसके कसम का भरोसा नहा। चटपट खा लेगा। जब इसने झूठी कसम खा ली, जो बड़ा धर्मात्मा बनता है, तो हीरा का क्या विश्वास?

अब गोबर बोला-खा ले झूठी कसम। बंस का अंत हो जाय। बूढ़े जीते रहें। जवान जीकर क्या करेंगे ।

रूपा एक क्षण में आकर बोली-काका घर में नहीं है, पडित दादा। काकी कहती हैं, कहीं चले गए हैं।

दातादीन ने लंबी दाढ़ी फटकारकर कहा-तूने पूछा नहीं, कहां चले गए हैं? घर में छिपा बैठा न हो। देख तो सोना, भीतर तो नहीं बैठा?

धनिया ने टोका उसे मत भेजो दादा हीरा के सिर हत्या सवार है, न जाने क्या कर बैठे।

दातादीन ने खुद लकड़ी संभाली और खबर लाए कि हीरा सचमुच कहीं चला गया है। पुनिया कहती है, लुटिया-डोर और डंडा सब लेकर गए हैं। पुनिया ने पूछा भी, कहां जाते हो, पर बताया नहीं। उसने पांच रुपये आले में रखे थे। रुपये वहां नहीं हैं। साइत रुपये भी लेता गया।

धनिया शीतल हदय से बोली-मुंह में कालिख कर कहीं भागा होगा।

सोभा बोला- भाग के कहां जायगा? गंगा नहाने न चला गया हो।

धनिया ने शंका की-गंगा जाता तो रुपये क्य ने जाता, और आजकल कोई परब भी तो नहीं है?

इस शंका का कोई समाधान मिला। धारणा दृढ़ हो गई।