क्या रखा है?
पटेश्वरीलाल बहुत लंबे थे, पर लंबे होकर भी बेवकूफ न थे। अपना लंबा, काला मुंह और लंबा करके बोले-और यहां आया है किसलिए, और जब आया है, बिना कुछ लिए दिए गया कब है।
झिंगुरीसिंह ने होरी को बुलाकर कान में कहा—निकालो, जो कुछ देना हो। यों गला न छूटेगा।
दारोगाजी ने अब जरा गरजकर कहा-मैं हीरा के घर की तलाशी लूंगा।
होरी के मुख का रंग उड़ गया था, जैसे देह का सारा रक्त सूख गया हो। तालाशी उसके घर हुई तो, उसके भाई के घर हुई तो, एक ही बात है। हीरा अलग सही, पर दुनिया तो जानती है, वह उसका भाई है, मगर इस वक्त उसका कुछ बस नहीं। उसके पास रुपये होते, तो इसी वक्त पचास रुपये लाकर दारोगाजी के चरणों पर रख देता और कहता-सरकार, मेरी इज्जत अब आपके हाथ है। मगर उसके पास तो जहर खाने को भी एक पैसा नहीं है। धनिया के पास चाहे दो-चार रुपये पड़े हों, पर वह चुडैल भला क्यों देने लगी? मृत्यु-दंड पाए हुए आदमी की भांति सिर झुकाए, अपने अपमान की वेदना का तीव्र अनुभव करता हुआ चुपचाप खड़ा रहा।
दातादीन ने होरी को सचेत किया-अब इस तरह खड़े रहने से काम न चलेगा होरी। रुपये की कोई जुगत करो।
होरी दीन स्वर में बोला-अब मैं क्या अरज करूं महाराज । अभी तो पहले ही की गठरी सिर पर लदी है, और किस मुंह से मांगू,लेकिन इस संकट से उबार लो। जीता रहा, तो कौड़ी कौड़ी चुका दूंगा। मैं मर भी जाऊं तो गोबर तो है ही।
नेताओं में सलाह होने लगी। दारोगाजी को क्या भेंट किया जाय?दातादीन ने पचास का प्रस्ताव किया। झिंगुरीसिंह के अनुमान में सौ से कम पर सौदा न होगा। नोखेराम भी सौ के पक्ष मे थे। और होरी के लिए सौ और पचास में कोई अंतर था। इस तलाशी का संकट उसके सिर से टल जाय। पूजा चाहे कितनी ही चढ़ानी पड़े। मरे को मनभर लकड़ी से जलाओ, या दस मन से, उसे क्या चिंता।
मगर पटेश्वरी से यह अन्याय न देखा गया। कोई डाका या कतल तो हुआ नहीं। केवल तलाशी हो रही है। इसके लिए बीस रुपये बहुत हैं। नेताओं ने धिक्कारा-तो फिर दारोगाजी से बातचीत करना। हम लोग नगीच न जायंगे। कौन घुडकियां खाए?
होरी ने पटेश्वरी के पांव पर अपना सिर रख दिया-भैया, मेरा उद्धार करो। जब तक जिऊंगा, तुम्हारी ताबेदारी करूंगा।
दारोगाजी ने फिर अपने विशाल वक्ष और विशालतर उदर की पूरी शक्ति से कहा- कहां है हीरा का घर? मैं उसके घर की तलाशी लूंगा।
पटेश्वरी ने आगे बढ़कर दारोगाजी के कान में कहा-तलाशी लेकर क्या करोगे हुजूर, उसका भाई आपकी ताबेदारी के लिए हाजिर है।
दोनों आदमी जरा अलग जाकर बातें करने लगे।
'कैसा आदमी है?'