पृष्ठ:गोदान.pdf/१०८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
108 : प्रेमचंद रचनावली-6
 

'बहुत ही गरीब हुजूर। भोजन का ठिकाना भी नहीं।'

'सच?'

'हां, हुजूर, ईमान से कहता हूं।'

'अरे, तो क्या एक पचासे का डौल भी नहीं है?'

'कहां की बात हुजूर दस मिल जायं, तो हजार समझिए। पचास तो पचास जनम में भी मुमकिन नहीं और वह भी जब कोई महाजन खड़ा हो जायगा।'

दारोगाजी ने एक मिनट तक विचार करके कहा-तो फिर उसे सताने से क्या फायदा? मैं ऐसों को नहीं सताता, जो आप ही मर रहे हों।

पटेश्वरी ने देखा, निशाना और आगे जा पड़ा बोले-नहीं हुजूर, ऐसा न कीजिए, नहीं फिर हम कहां जायंगे। हमारे पास दूसरी और कौन-सी खेती है?

'तुम इलाके के पटवारी हो जी, कैसी बातें करते हो?'

'जब ऐसा कोई अवसर आ जाता है, तो आपकी बदौलत हम भी कुछ पा जाते है, नहीं पटवारी को कौन पूछता है?'

'अच्छा जाओ, तीस रुपये दिलवा दो, बीस रुपये हमारे दस रुपये तुम्हारे।'

'चार मुखिया हैं, इसका खयाल कीजिए।'

'अच्छा आधे-आध पर रखो, जल्दी करो। मुझे देर हो रही है।'

पटेश्वरी ने झिंगुरी से कहा, झिंगुरी ने होरी को इशारे से बुलाया, अपने घर ले गए, तीस रुपये गिनकर उसके हवाले किए और एहसान से दबाते हुए बोले-आज ही कागद लिखा लेना। तुम्हारा मुंह देखकर रुपये दे रहा हूं, तुम्हारी भलमंसी पर।

होरी ने रुपये लिए और अंगोछे के कोर में बांधे प्रसन्न-मुख आकर दारोगाजी की ओर चला।

सहसा धनिया झपटकर आगे आई और अंगोछी एक झटके के साथ उसके हाथ से छीन ली। गांठ पक्की न थी। झटका पाते ही खुल गई और सारे रुपये जमीन पर बिखर गए। नागिन की तरह फुंकारकर बोली-ये रुपये कहां लिए जा रहा है, बता? भला चाहता है, तो सब रुपये लौटा दे, नहीं कहे देती हूं। घर के परानी रात-दिन मरें और दाने-दाने को तरसे, लत्ता भी पहनने को मयस्सर न हो और अंजुली-भर रुपये लेकर चला है इज्जत बचाने। ऐसी बड़ी है तेरी इज्जत। जिसके घर में चूहे लोटें, वह भी इज्जत वाला है। दारोगा तलाशी ही तो लेगा ले-ले जहां चाहे तलासी। एक तो सौ रुपये की गाय गई, उस पर यह पलेथन। वाह री तेरी इज्जत।

होरी खून का घूंट पीकर रह गया। सारा समूह जैसे थर्रा उठा। नेताओं के सिर झुक गए। दारोगा का मुंह जरा-सा निकल आया। अपने जीवन में उसे ऐसी लताड़ न मिली थी।

होरी स्तंभित-सा खड़ा रहा। जीवन में आज पहली बार धनिया नेउसे भरे अखाड़े में पटकनी दी आकाश तका दिया। अब वह कैसे सिर उठाए ।

मगर दारोगा जी इतनी जल्दी हार मानने वाले न थे । खिसियाकर बोले-मुझे ऐसा मालूम होता है, कि इस शैतान की खाला ने हीरा को फंसाने के लिए खुद गाय को जहर दे दिया।