धनिया हाथ मटकाकर बोली-हां, दे दिया। अपनी गाय थी, मार डाली, फिर किसी दूसरे का जानवर तो नहीं मारा? तुम्हारे तहकियात में यही निकलता है, तो यही लिखो। पहना दो मेरे हाथ में हथकड़ियां। देख लिया तुम्हारा न्याय और तुम्हारे अक्कल की दौड़। गरीबों का गला काटना दूसरी बात है। दूध का दूध और पानी का पानी करना दूसरी बात।
होरी आंखों से अंगारे बरसाता धनिया की ओर लपका, पर गोबर सामने आकर खड़ा हो गया और उग्र भाव से बोला-अच्छा दादा, अब बहुत हुआ। पीछे हट जाओ, नहीं मैं कहे देता हूं, मेरा मुंह न देखोगे। तुम्हारे ऊपर हाथ न उठाऊंगा। ऐसा कपूत नहीं हूं। यहीं गले में फांसी लगा लूंगा।
होरी पीछे हट गया और धनिया शेर होकर बोली-तू हट जा गोबर, देखूं तो क्या करता है मेरा। दारोगाजी बैठे हैं। इसकी हिम्मत देखूं । घर में तलासी होने से इसकी इज्जत जाती है। अपनी मेहरिया को सारे गांव के सामने लतियाने से इसकी इज्जत नहीं जाती ! यही तो वीरों का धरम है। बड़ा वीर है, तो किसी मरद से लड़। जिसकी बांह पकड़कर लाया, उसे मारकर बहादुर कहलाएगा। तू समझता होगा, इसे रोटी-कपड़ा देता हूं। आज से अपना घर संभाल। देख तो इसी गांव में तेरी छाती पर मूंग दलकर रहती हूं कि नहीं, और इससे अच्छा खाऊं- पहनूंगी। इच्छा हो देख ले।
होरी परास्त हो गया। उसे ज्ञात हुआ, स्त्री के सामने पुरुष कितना निर्बल, कितना निरुपाय है।
नेताओं ने रुपये चुनकर उठा लिए थे और दारोगाजी को वहां से चलने का इशारा कर रहे थे। धनिया ने एक ठोकर और जमाई-जिसके रुपये हों, ले जाकर उसे दे दो। हमें किसी से उधार नहीं लेना है। और जो देना है, तो उसी से लेना। मैं दमड़ी भी न दूंगी, चाहे मुझे हाकिम के इजलास तक ही चढ़ना पड़े। हम बाकी चुकाने को पच्चीस रुपये मांगते थे, किसी ने न दिया। आज अंजुली-भर रुपये ठनाठन निकाल के दे दिए। मैं सब जानती हूं। यहां तो बांट-बखरा होने वाला था, सभी के मुंह मीठे होते। ये हत्यारे गांव के मुखिया हैं, गरीबों का खून चूसने वाले। सूद-ब्याज, डेढ़ी-सवाई, नजर-नजराना, घूस-पास जैसे भी गरीबों को लूटो। उस पर सुराज चाहिए। जेहल जाने से सुराज न मिलेगा। सुराज मिलेगा धरम से, न्याय से।
नेताओं के मुख में कालिख-सी लगी हुई थी। दारोगाजी के मुंह पर झाडू-सी फिरी हुई थी। इज्जत बचाने के लिए हीरा के घर की ओर चले।
रास्ते में दारोगा ने स्वीकार किया औरत है बड़ी दिलेर ।
पटेश्वरी बोले—दिलेर है हुजूर, कर्कशा है। ऐसी औरत को तो गोली मार दे।
'तुम लोगों का काफिया तंग कर दिया उसने। चार-चार तो मिलते ही।'
'हुजूर के भी तो पंद्रह रुपये गए।'
'मेरे कहां जा सकते हैं? वह न देगा, गांव के मुखिया देंगे और पंद्रह रुपये की जगह पूरे पचास रुपये। आप लोग चटपट इंतजाम कीजिए।'
पटेश्वरीलाल ने हंसकर कहा-हुजूर बड़े दिल्लगीबाज हैं।
दातादीन बोले-बड़े आदमियों के यही लक्षण हैं। ऐसे भाग्यवानों के दर्शन कहां होते हैं?
दारोगाजी ने कठोर स्वर में कहा-यह खुशामद फिर कीजिएगा। इस वक्त तो मुझे पचास