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110 : प्रेमचंद रचनावली-6
 


रुपये दिलवाइए, नकद, और यह समझ लो कि आनाकानी की, तो तुम चारों के घर की तलाशी लूंगा। बहुत मुमकिन है कि तुमने हीरा और होरी को फंसाकर उनसे सौ-पचास ऐंठने के लिए पाखंड रचा हो।
नेतागण अभी तक यही समझ रहे हैं, दारोगाजी विनोद कर रहे हैं।
झिंगुरीसिंह ने आंखें मारकर कहा-निकालो पचास रुपये पटवारी साहब।
नोखेराम ने उनका समर्थन किया-पटवारी साहब का इलाका है। उन्हें जरूर आपकी खातिर करनी चाहिए।
पंडित दातादीन की चौपाल आ गई। दारोगाजी एक चारपाई पर बैठ गए और बोले- तुम लोगों ने क्या निश्चय किया? रुपये निकालते हो या तलाशी करवाते हो?
दातादीन ने आपत्ति की-मगर हुजूर...
'मैं अगर-मगर कुछ नहीं सुनना चाहता।'
झिंगुरीसिंह ने साहस किया-सरकार, यह तो सरासर...
'मैं पंद्रह मिनट का समय देता हूं। अगर इतनी देर में पूरे पचास रुपये न आए तो तुम चारों के घर की तलाशी होगी। और गंडासिंह को जानते हो? उसका मारा पानी भी नहीं मांगता।'
पटेश्वरीलाल ने तेज स्वर से कहा-आपको अख्तियार है, तलाशी ले लें। यह अच्छी दिल्लगी है, काम कौन करे, पकड़ा कौन जाय।
'मैंने पच्चीस साल थानेदारी की है, जानते हो?'
'लेकिन ऐसा अंधेर तो कभी नहीं हुआ।'
'तुमने अभी अंधेर नहीं देखा। कहो तो वह भी दिखा दूं? एक-एक को पांच-पांच साल के लिए भेजवा दूं। यह मेरे बांए हाथ का खेल है। एक डाके में सारे गांव को काले पानी भेजवा सकता हूं। इस धोखे में न रहना।'
चारों सज्जन चौपाल के अंदर जाकर विचार करने लगे।
फिर क्या हुआ, किसी को मालूम नहीं। हां, दारोगाजी प्रसन्न दिखाई दे रहे थे और चारों सज्जनों के मुंह पर फटकार बरस रही थी।
दारोगाजी घोड़े पर सवार होकर चले, तो चारों नेता दौड़ रहे थे। घोड़ा दूर निकल गया तो चारों सज्जन लौटे, इस तरह मानो किसी प्रियजन का संस्कार करके श्मशान से लौट रहे हों।
सहसा दातादीन बोले-मेरा सराप न पड़े तो मुंह न दिखाऊं।
नोखेराम ने समर्थन किया-ऐसा धन कभी फलते नहीं देखा।
पटेश्वरी ने भविष्यवाणी-हराम की कमाई हराम में जायगी।
झिंगुरीसिंह को आज ईश्वर की न्यायपरता में संदेह हो गया था। भगवान् न जाने कहां है कि यह अंधेर देखकर भी पापियों को दंड नहीं देते।
इस वक्त इन सज्जनों की तस्वीर खींचने लायक थी।