दस
हीरा का कहीं पता न चला और दिन गुजरते जाते थे। होरी से जहां तक दौड़-धूप हो सकी की, फिर हारकर बैठ रहा। खेती-बारी की भी फिक्र करना थी। अकेला आदमी क्या-क्या करता?
और अब अपनी खेती से ज्यादा फिक्र थी पुनिया की खेती की। पुनिया अब अकेली होकर और
भी प्रचंड हो गई थी। होरी को अब उसकी खुशामद करते बीतती थी। हीरा था, तो वह पुनिया
को दबाए रहता था। उसके चले जाने से अब पुनिया पर कोई अंकुस न रह गया था। होरी की
पट्टीदारी हीरा से थी। पुनिया अबला थी। उससे वह क्या तनातनी करता? और पुनिया उसके
स्वभाव से परिचित थी और उसकी सज्जनता का उसे खूब दंड देती थी। खैरियत यही
हुई कि कारकुन साहब ने पुनिया से बकाया लगान वसूल करने की कोई सख्ती न की,
केवल थोड़ी-सी पूजा लेकर राजी हो गए। नहीं, होरी अपनी बकाया के साथ उसकी
बकाया चुकाने के लिए भी कर्ज लेने को तैयार था। सावन में धान की रोपाई की ऐसी
धूम रही कि मजूर न मिले और होरी अपने खेतों में धान न रोप सका, लेकिन पुनिया के
खेतों में कैसे न रोपाई होती? होरी ने पहर रात-रात तक काम करके उसके धान रोपे। अब होरी
ही तो उसका रक्षक है। अगर पुनिया को कोई कष्ट हुआ, तो दुनिया उसी को तो हंसेगी नतीजा
यह हुआ कि होरी की खरीफ की फसल में बहुत थोड़ा अनाज मिला, और पुनिया के बखार
में धान रखने की जगह न रही।
होरी और धनिया में उस दिन से बराबर मनमुटाव चला आता था। गोबर से भी होरी की
बोलचाल बंद थी। मां-बेटे ने मिलकर जैसे उसका बहिष्कार कर दिया था। अपने घर में परदेसी
बना हुआ था। दो नावों पर सवार होने वालों की जो दुर्गति होती है, वही उसकी हो रही थी।
गांव में भी अब उसका उतना आदर न था। धनिया ने अपने साहस से स्त्रियों का ही नहीं, पुरुषों
का नेतृत्व भी प्राप्त कर लिया था। महीनों तक आसपास के इलाकों में इस कांड की खूब चर्चा
रही। यहां तक कि वह एक अलौकिक रूपतक धारण करता जाता था-'धनिया नाम है उसका
जी। भवानी का इष्ट है उसे। दारोगाजी ने ज्यों ही उसके आदमी के हाथ में हथकड़ी डाली कि
धनिया ने भवानी का सुमिरन किया। भवानी उसके सिर आ गई। फिर तो उसमें इतनी शक्ति
आ गई कि उसने एक झटके में पति की हथकड़ी तोड़ डाली और दारोगा की मूंछें पकड़कर
उखाड़ लीं, फिर उसकी छाती पर चढ़ बैठी। दारोगा ने जब बहुत मानता की, तब जाकर उसे
छोड़ा।' कुछ दिन तो लोग धनिया के दर्शनों को आते रहे। वह बात अब पुरानी पड़ गई थी, लेकिन
गांव में धनिया का सम्मान बहुत बढ़ गया था। उसमें अद्भुत साहस है और समय पड़ने पर
वह मर्दों के भी कान काट सकती है।
मगर धीरे-धीरे धनिया में एक परिवर्तन हो रहा था। होरी को पुनिया की खेती में लगे
देखकर भी वह कुछ न बोलती थी। और यह इसलिए नहीं कि वह होरी से विरक्त हो गई थी,
बल्कि इसलिए कि पुनिया पर अब उसे भी दया आती थी। हीरा का घर से भाग जाना उसकी
प्रतिशोध-भावना की तुष्टि के लिए काफी था।
इसी बीच में होरी को ज्वर आने लगा। फस्ली बुखार फैला था ही। होरी उसके चपेट
में आ गया। और कई साल के बाद जो ज्वर आया, तो उसने सारी बकाया चुका ली। एक महीने
तक होरी खाट पर पड़ा रहा। इस बीमारी ने होरी को तो कुचल डाला ही, पर धनिया पर भी