है कि पुनिया के विचार उसकी ओर से अच्छे नहीं हैं। न हों। पुनिया की गृहस्थी तो उसे संभालनी
ही पड़ेगी, चाहे हंसकर संभाले या रोकर।
धनिया का दिल भी अभी तक साफ नहीं हुआ। अभी तक उसके मन में मलाल बना हुआ है। मुझे सब आदमियों के सामने उसको मारना न चाहिए था। जिसके साथ पच्चीस साल गुजर गए, उसे मारना और सारे गांव के सामने मेरी नीचता थी, लेकिन धनिया ने भी तो मेरी आबरू उतारने में कोई कसर नहीं छोड़ी। मेरे सामने से कैसा कतराकर निकल जाती है, जैसे कभी की जान-पहचान ही नहीं। कोई बात कहनी होती है, तो सोना या रूपा से कहलाती है। देखता हूं, उसकी साड़ी फट गई है, मगर कल मुझसे कहा भी, तो सोना की साड़ी के लिए अपनी साड़ी का नाम तक न लिया। सोना की साड़ी अभी दो-एक महीने थेगलियां लगाकर चल सकती है। उसकी साड़ी तो मारे पेबंदों के बिल्कुल कथरी हो गई है। और फिर मैं ही कौन उसका मनुहार कर रहा हूं? अगर मैं ही उसके मन की दो-चार बातें करता रहता, तो कौन छोटा हो जाता? यही तो होता, वह थोड़ा-सा अदरावन कराती, दो-चार लगने वाली बातें कहती, तो क्या मुझे चोट लगी जाती, बुड्ढा होकर भी उल्लू बना रह गया। वह तो कहो, इस बीमारी ने आकर उसे नर्म कर दिया, नहीं जाने कब तक मुंह फुलाए रहती।
और आज उन दोनों में जो बातें हुई थीं, वह मानों भूखे का भोजन थीं। वह दिल से बोली थी और होरी गद्गद् हो गया था। उसके जी में आया, उसके पैरों पर सिर रख दे और कहे-मैंने तुझे मारा है तो ले मैं सिर झुकाए लेता हूं, जितना चाहे मार ले, जितनी गालियां देना चाहे दे ले।
सहसा उसे मंड़ैया के सामने चूड़ियों की झंकार सुनाई दी। उसने कान लगाकर सुना। हां, कोई है। पटवारी की लड़की होगी, चाहे पंडित की घरवाली हो। मटर उखाड़ने आई होगी। न जाने क्यों इन लोगों की नीयत इतनी खोटी है। सारे गांव से अच्छा पहनते हैं। सारे गांव से अच्छा खाते हैं, घर में हजारों रुपये गड़े हुए हैं, लेन-देन करते हैं, ड्योढ़ी-सवाई चलाते हैं, घूस लेते हैं, दस्तूरी लेते हैं, एक-न-एक मामला खड़ा करके हमा-सुमा को पीसते ही रहते , फिर भी नीयत का यह हाल। बाप जैसा होगा, वैसी ही संतान भी होगी। और आप नहीं आते, औरतों को भेजते हैं। अभी उठकर हाथ पकड़ लूं तो क्या पानी रह जाय। नीच कहने का नीच हैं, जो ऊंचे हैं, उनका मन तो और नीचा है। औरत जात का हाथ पकड़ते भी तो नहीं बनता, आंखों देखकर मक्खी निगलनी पड़ती है। उखाड़ ले भाई, जितना तेरा जी चाहे। समझ ले, मैं नहीं हूं। बड़े आदमी अपनी लाज न रखें, छोटों को तो उनकी लाज रखनी ही पड़ती है।
मगर नहीं, यह तो धनिया है। पुकार रही है।
धनिया ने पुकारा-सो गए कि जागते हो?
होरी झटपट उठा और मंडै़या के बाहर निकल आया। आज मालूम होता है, देवी प्रसन्न हो गई, उसे वरदान देने आई हैं, इसके साथ ही इस बादल छेदी और जाड़े-पाले में इतनी रात गए उसका आना शंकाप्रद भी था। जरूर कोई-न-कोई बात हुई है।
बोला-ठंड के मारे नींद भी आती है? तू इस जाड़े-पाले में कैसे आई? सब कुसल तो है?
'हां, सब कुसल है।'
'गोबर को भेजकर मुझे क्यों नहीं बुलवा लिया?'