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पृष्ठ:गोदान.pdf/१३५

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गोदान : 135
 


हूं, ऐसा मौका शायद आपको फिर न मिले। रानी साहब चंदा को आपके मुकाबले में रुपये में एक आना (रुपये का सोलहवां भाग) भी चांस नहीं है। मेरी इच्छा केवल यह है कि कौंसिल में ऐसे लोग जायं, जिन्होंने जीवन में कुछ अनुभव प्राप्त किया है और जनता की कुछ सेवा की है। जिस महिला ने भोग-विलास के सिवा कुछ जाना ही नहीं, जिसने जनता को हमेशा अपनी कार का पेट्रोल समझा, जिसकी सबसे मूल्यवान सेवा वे पार्टियां हैं, जो वह गवर्नरों और सेक्रेटरियों को दिया करती हैं, उनके लिए इस कौंसिल में स्थान नहीं है। नई कौंसिल में बहुत कुछ अधिकार प्रतिनिधियों के हाथ में होगा और मैं नहीं चाहता कि वह अधिकार अनाधिकारियों के हाथ में जाय।

मालती ने पीछा छुड़ाने के लिए कहा-लेकिन साहब, मेरे पास दस-बीस हजार एलेक्शन पर खर्च करने के लिए कहां हैं? रानी साहब तो दो-चार लाख खर्च कर सकती हैं। मुझे भी साल में हजार-पांच सौ रुपये उनसे मिल जाते हैं, यह रकम भी हाथ से निकल जायगी।

'पहले आप यह बता दें कि आप जाना चाहती हैं या नहीं?'

'जाना तो चाहती हूं, मगर फ्री पास मिल जाय।'

'तो यह मेरा जिम्मा रहा। आपको फ्री पास मिल जायगा।'

'जी नहीं, क्षमा कीजिए। मैं हार की जिल्लत नहीं उठाना चाहती। जब रानी साहब रुपये की थैलियां खोल देंगी और एक-एक वोट पर अशर्फी चढ़ने लगेगी, तो शायद आप भी उधर वोट देंगे।'

'आपके खयाल से एलेक्शन महज रुपये से जीता जा सकता है?'

'जी नहीं, व्यक्ति भी एक चीज है। लेकिन मैंने केवल एक बार जेल जाने के सिवा और क्या जनसेवा की है? और सच पूछिए तो उस बार भी मैं अपने मतलब ही से गई थी, उसी तरह जैसे रायसाहब और खन्ना गए थे। इस नई सभ्यता का आधार धन है। विद्या और सेवा और कुल जाति सब धन के सामने हेय हैं। कभी-कभी इतिहास में ऐसे अवसर आ जाते हैं, जब धन को आंदोलन के सामने नीचा देखना पड़ता है, मगर इसे अपवाद समझिए। मैं अपनी ही बात कहती हूं। कोई गरीब औरत दवाखाने में आ जाती है, तो घंटों उससे बोलती तक नहीं, पर कोई महिला कार पर आ गई, तो द्वार तक जाकर उसका स्वागत करती हूं और उसकी ऐसी उपासना करती हूं, मानों साक्षात् देवी हैं। मेरा और रानी साहब का कोई मुकाबला नहीं। जिस तरह के कौंसिल बन रहे हैं, उनके लिए रानी साहब ही ज्यादा उपयुक्त हैं।

उधर मैदान में मेहता की टीम कमजोर पड़ती जाती थी। आधे से ज्यादा खिलाड़ी मर चुके थे। मेहता ने अपने जीवन में कभी कबड्डी न खेली थी। मिर्जा इस फन के उस्ताद थे। मेहता की तातीलें अभिनय के अभ्यास में कटती थीं। रूप भरने में वह अच्छे-अच्छों को चकित कर देते थे। और मिर्जा के लिए सारी दिलचस्पी अखाड़े में थी, पहलवानों के भी और परियों के भी।

मालती का ध्यान उधर भी लगा हुआ था। उठकर रायसाहब से बोली-मेहता की पार्टी तो बुरी तरह पिट रही है।

रायसाहब और खन्ना में इंश्योरेंस की बातें हो रही थीं। रायसाहब उस प्रसंग से ऊबे हुए मालूम होते थे। मालती ने मानो उन्हें एक बंधन से मुक्त कर दिया। उठकर बोले-जी हां, पिट