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136 : प्रेमचंद रचनावली-6
 


तो रही है। मिर्जा पक्का खिलाड़ी है।

'मेहता को यह क्या सनक सूझी। व्यर्थ अपनी भद्द करा रहे हैं।'

'इसमें काहे की भद? दिल्लगी ही तो है।'

'मेहता की तरफ से जो बाहर निकलता है, वही मर जाता है।'

एक क्षण के बाद उसने पूछा-क्या इस खेल में हाफटाइम नहीं होता?

खन्ना को शरारत सूझी। बोले-आप चले थे मिर्जा से मुकाबला करने। समझते थे, यह भी फिलौसफी है।

'मैं पूछती हूं, इस खेल में हाफटाइम नहीं होता?'

खन्ना ने फिर चिढ़ाया-अब खेल ही खतम हुआ जाता है। मजा आएगा तब, जब मिर्जा मेहता को दबोचकर रगड़ेंगे और मेहता साहब 'चीं' बोलेंगे।

'मैं तुमसे नहीं पूछती। रायसाहब से पूछती हूं।'

रायसाहब बोले-इस खेल में हाफटाइम! एक ही एक आदमी तो सामने आता है।

'अच्छा, मेहता का एक आदमी और मर गया।'

खन्ना बोले-आप देखती रहिए। इसी तरह सब मर जाएंगे और आखिर में मेहता साहब भी मरेंगे।

मालती जल गई-आपकी तो हिम्मत न पड़ी बाहर निकलने की।

'मैं गंवारों के खेल नहीं खेलता। मेरे लिए टेनिस है।'

'टेनिस में भी मैं तुम्हें सैकड़ों गेम दे चुकी हूं।'

'आपसे जीतने का दावा ही कब है?'

'अगर दावा हो, तो मैं तैयार हूं।'

मालती उन्हें फटकार बताकर फिर अपनी जगह पर आ बैठी। किसी को मेहता से हमदर्दी नहीं है। कोई यह नहीं कहता कि अब खेल खत्म कर दिया जाय। मेहता भी अजीब बुद्धू आदमी हैं, कुछ धाँधली क्यों नहीं कर बैठते। यहां भी अपनी न्यायप्रियता दिखा रहे हैं। अभी हारकर लौटेंगे तो चारों तरफ से तालियां पड़ेंगी। अब शायद बीस आदमी उनकी तरफ और होंगे और लोग कितने खुश हो रहे हैं।

ज्यों-ज्यों अंत समीप आता जाता था, लोग अधीर होते जाते थे और पाली की तरफ बढ़ते जाते थे। रस्सी का जो एक कठघरा-सा बनाया गया था, वह तोड़ दिया गया। स्वयं-सेवक रोकने की चेष्टा कर रहे थे, पर उस उत्सुकता के उन्माद में उनकी एक न चलती थी। यहां तक कि ज्वार अंतिम बिंदु तक आ पहुंचा और मेहता अकेले बच गए और अब उन्हें गूंगे का पार्ट खेलना पड़ेगा। अब सारा दारमदार उन्हीं पर है, अगर वह बचकर अपनी पाली में लौट आते हैं, तो उनका पक्ष बचता है। नहों, हार का सारा अपमान और लज्जा लिए हुए उन्हें लौटना पड़ता है, वह दूसरे पक्ष के जितने आदमियों को छूकर अपनी पाली में आयंगे, वह सब मर जायेंगे और उतने ही आदमी उनकी तरफ जी उठेंगे। सबकी आंखें मेहता की ओर लगी हुई थीं। वह मेहता चले। जनता ने चारों ओर से आकर पाली को घेर लिया। तन्मयता अपनी पराकाष्ठा पर थी। मेहता कितने शांत भाव से शत्रुओं की ओर जा रहे हैं। उनकी प्रत्येक गति जनता पर प्रतिबिबिंत हो जाती है, किसी की गर्दन टेढ़ी हुई जाती है, कोई आगे को झुक पड़ता है। वातावरण गर्म हो गया। पारा ज्वाला-बिंदु पर आ पहुंचा है। मेहता शत्रुदल में घुसे। दल पीछे हटता जाता है। उनका