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पृष्ठ:गोदान.pdf/१४३

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गोदान : 143
 


सबर कर लूंगा।

'कहने का मन तो चाहता है, मरता क्या न करता, लेकिन कहूंगा नहीं।'

'तुम कह ही नहीं सकते।'

'हां भैया, मैं नहीं कह सकता। हंसी कर रहा था।'

एक क्षण तक वह दुविधा में पड़ा रहा। फिर बोला-तुम मुझसे इतना बैर क्यों पाल रहे हो भोला भाई। झुनिया मेरे घर में आ गई, तो मुझे कौन-सा सरग मिल गया? लड़का अलग हाथ से गया, दो सौ रुपया डांड अलग भरना पड़ा। मैं तो कहीं का न रहा और अब तुम भी मेरी जड़ खोद रहे हो। भगवान् जानते हैं, मुझे बिल्कुल न मालूम था कि लौंडा क्या कर रहा है। मैं तो समझता था, गाना सुनने जाता होगा। मुझे तो उस दिन पता चला, जब आधी रात को झुनिया घर में आ गई। उस बखत मैं घर में न रखता, तो सोचो, कहां जाती? किसकी होकर रहती?

झुनिया बरौठे के द्वार पर छिपी खड़ी यह बातें सुन रही थी। बाप को अब वह बाप नहीं शत्रु समझती थी। डरी, कहीं होरी बैलों को दे न दें। जाकर रूपा से बोली-अम्मां को जल्दी से बुला ला। कहना, बड़ा काम है, बिलम न करो!

धनिया खेत में गोबर फेंकने गई थी, बहू का संदेश सुना, तो आकर बोली-काहे बुलाया है बहू, मैं तो घबड़ा गई।

'काका को तुमने देखा है न?'

'हां देखा, कसाई की तरह द्वार पर बैठा हुआ है। मैं तो बोली भी नहीं।'

'हमारे दोनों बैल मांग रहे हैं, दादा से।'

धनिया के पेट की आगे भीतर सिमट गईं।

'दोनों बैल मांग रहे हैं?'

'हां, कहते हैं या तो हमारे रुपये दो, या हम दोनों बैल खोल ले जायंगे।'

'तेरे दादा ने क्या कहा?'

'उन्होंने कहा, तुम्हारा धरम कहता हो, तो खोल ले जाओ।'

'तो खोल ले जाय, लेकिन इसी द्वार पर आकर भीख न मांगे, तो मेरे नाम पर थूक देना। हमारे लहू से उसकी छाती जुड़ाती हो, तो जुड़ा ले।'

वह इसी तैश में बाहर आकर होरी से बोली-महतो दोनों बैल मांग रहे हैं, तो दे क्यों नहीं देते? उनका पेट भरे, हमारे भगवान् मालिक हैं। हमारे हाथ तो नहीं काट लेंगे? अब तक अपनी मजूरी करते थे, अब दूसरों को मजूरी करेंगे। भगवान् की मरजी होगी, तो फिर बैल-बधिये हो जायेंगे, और मजूरी ही करते रहे, तो कौन बुराई है। बूड़े-सूखे और पोत-लगान का बोझ न रहेगा। मैं न जानती थी, यह हमारे जैसे हैं, नहीं गाय लेकर अपने सिर पर विपत्ति क्यों लेती। उस निगोड़ी का पौरा जिस दिन से आया, घर तहस-नहस हो गया।

भोला ने अब तक जिस शस्त्र को छिपा रखा था, अब उसे निकालने का अवसर आ गया। उसे विश्वास हो गया, बैलों के सिवा इन सबों के पास कोई अवलंब नहीं है। बैलों को बचाने के लिए ये लोग सब कुछ करने को तैयार हो जायंगे। अच्छे निशानेबाज की तरह मन को साधकर बोला-अगर तुम चाहते हो कि हमारी बेइज्जती हो और तुम चैन से बैठो, तो यह न होगा। तुम अपने सौ-दो-सौ को रोते हो। यहां लाख रुपये की आबरू बिगड़ गई। तुम्हारी कुसल