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154 : प्रेमचंद रचनावली-6
 


अपने बराबर बनाने के लिए, उन पुरुषों का, जो कायर हैं, जिनमें वैवाहिक जीवन का दायित्व संभालने की क्षमता नहीं है, जो स्वच्छंद काम-क्रीड़ा की तरंगों में सांड़ों की भांति दूसरों की हरी-भरी खेती में मुंह डालकर अपनी कुत्सित लालसाओं को तृप्त करना चाहते हैं। पश्चिम में इनका षड्यंत्र सफल हो गया और देवियां तितलियां बन गईं। मुझे यह कहते हुए शर्म आती है कि इस त्याग और तपस्या की भूमि भारत में भी कुछ वही हवा चलने लगी है? विशेषकर हमारी शिक्षित बहनों पर वह जादू बड़ी तेजी से चढ़ रहा है। वह गृहिणी का आदर्श त्यागकर तितलियों का रंग पकड़ रही हैं।

सरोज उत्तेजित होकर बोली-हम पुरुषों से सलाह नहीं मांगतीं। अगर वह अपने बारे में स्वतंत्र हैं, तो स्त्रियां भी अपने विषय में स्वतंत्र हैं। युवतियां अब विवाह को पेशा नहीं बनाना चाहतीं। वह केवल प्रेम के आधार पर विवाह करेंगी।

जोर से तालियां बजीं, विशेषकर अगली पंक्तियों में, जहां महिलाएं थीं।

मेहता ने जवाब दिया-जिसे तुम प्रेम कहती हो, वह धोखा है, उद्दीप्त लालसा का कविकृत रूप, उसी तरह जैसे संन्यास केवल भीख मांगने का संस्कृत रूप है। वह प्रेम अगर वैवाहिक जीवन में कम है, तो मुक्त विलास में बिल्कुल नहीं है। सच्चा आनंद, सच्ची शांति केवल सेवा-व्रत में है। वही अधिकार का स्त्रोत है, वही शक्ति का उद्गम है। सेवा ही वह सीमेंट है, जो दंपति को जीवनपर्यंत स्नेह और साहचर्य में जोड़े रख सकता है, जिस पर बड़े-बड़े आघातों का भी कोई असर नहीं होता। जहां सेवा का अभाव है, वहीं विवाह-विच्छेद है, परित्याग है, अविश्वास है। और आपके ऊपर, पुरुष-जीवन की नौक़ा का कर्णधार होने के कारण जिम्मेदारी ज्यादा है। आप चाहें तो नौका को आंधी और तूफानों में पार लगा सकती हैं। और आपने असावधानी की, तो नौका डूब जायगी और उसके साथ आप भी डूब जायंगी।

भाषण समाप्त हो गया। विषय विवाद-ग्रस्त था और कई महिलाओं ने जवाब देने की अनुमति मांगी, मगर देर बहुत हो गई थी। इसलिए मालती ने मेहता को धन्यवाद देकर सभा भंग कर दी। हां, यह सूचना दे दी गई कि अगले रविवार को इसी विषय पर कई देवियां अपने विचार प्रकट करेंगी।

रायसाहब ने मेहता को बधाई दी-आपने मेरे मन की बातें कहीं। मिस्टर मेहता। मैं आपके एक-एक शब्द से सहमत हूं।

मालती हंसी-आप क्यों न बधाई देंगे, चोर-चोर मौसेरे भाई जो होते हैं, मगर यहां सारा उपदेश गरीब नारियों ही के सिर क्यों थोपा जाता है? उन्हीं के सिर क्यों आदर्श और मर्यादा और त्याग सब कुछ पालन करने का भार पटका जाता है?

मेहता बोले-इसलिए कि वह बात समझती हैं।

खन्ना ने मालती की ओर अपनी बड़ी-बड़ी आंखों से देखकर मानो उसके मन की बात समझने की चेष्टा करते हुए कहा-डाक्टर साहब के यह विचार मुझे तो कोई सौ साल पिछड़े हुए मालूम होते हैं।

मालती ने कटु होकर पूछा-कौन से विचार?

'यही सेवा और कर्तव्य आदि।'

'तो आपको ये विचार सौ साल पिछड़े हुए मालूम होते हैं। तो कृपा करके अपने ताजे