थे। साल-साल भर तलब नहीं मिलती थी। उसे छोड़कर दूसरे की नौकरी की। उसने दो साल तक एक पाई न दी। एक बार दादा गरम पड़े, तो मारकर भगा दिया। इनके वादों का कोई करार नहीं।'
'मैं आज ही बिल भेजता हूं।'
'भेजा करो। कह देंगे, कल आना कल अपने इलाके पर चले जायंगे। तीन महीने में लौटेंगे।'
ओंकारनाथ संशय में पड़ गए। ठीक तो है, कहीं रायसाहब पीछे से मुकर गए तो वह क्या कर लेंगे? फिर भी दिल मजबूत करके कहा-ऐसा नहीं हो सकता। कम-से-कम रायसाहब को मैं इतना धोखेबाज नहीं समझता। मेरा उनके यहां कुछ बाकी नहीं है।
गोमती ने उसी संदेह के भाव से कहा-इसी से तो मैं तुम्हें बुद्धु कहती हूं। जरा किसी ने सहानुभूति दिखाई और तुम फूल उठे। मोटे रईस हैं। इनके पेट में ऐसे कितने वादे हजम हो सकते हैं। जितने वादे करते हैं, अगर सब पूरा करने लगें, तो भीख मांगने की नौबत आ जाय। मेरे गांव के ठाकुर साहब तो दो-दो, तीन-तीन साल तक बनियों का हिसाब न करते थे। नौकरों का वेतन तो नाम के लिए देते थे। साल-भर काम लिया, जब नौकर ने वेतन मांगा, मारकर निकाल दिया। कई बार इसी नादेिहंदी में स्कूल से उनके लड़कों के नाम कट गए। आखिर उन्होंने लड़कों को घर बुला लिया। एक बार रेल का टिकट भी उधार मांगा था। यह रायसाहब भी तो उन्हीं के भाईबंद हैं। चलो, भोजन करो और चक्की पीसो, जो तुम्हारे भाग्य में लिखा है। यह समझ लो कि ये बड़े आदमी तुम्हें फटकारते रहें, वही अच्छा है। यह तुम्हें एक पैसा देंगे, तो उसका चौगुना अपने असामियों से वसूल कर लेंगे। अभी उनके विषय में जो कुछ चाहते हो, लिखते हो। तब तो ठकुरसोहाती ही करनी पड़ेगी।
पंडितजी भोजन कर रहे थे, पर कौर मुंह में फंसा हुआ जान पड़ता था। आखिर बिना दिल का बोझ हल्का किए, भोजन करना कठिन हो गया। बोले-अगर रुपये न दिए, तो ऐसी खबर लूंगा कि याद करेंगे। उनकी चोटी मेरे हाथ में है। गांव के लोग झूठी खबर नहीं दे सकते। सच्ची खबर देते तो उनकी जान निकलती है, झूठी खबर क्या देंगे। रायसाहब के खिलाफ एक रिपोर्ट मेरे पास आई है। छाप दूं, तो बचा को घर से निकलना मुश्किल हो जाय। मुझे वह खैरात नहीं दे रहे हैं, बड़े दबसट में पड़कर इस राह पर आए हैं। पहले धमकियां दिखा रहे थे। जब देखा, इससे काम न चलेगा, तो यह चारा फेंका। मैंने भी सोचा, एक इनके ठीक हो जाने से तो देश से अन्याय मिटा जाता नहीं, फिर क्यों न इस दान को स्वीकार कर लूं? मैं अपने आदर्श से गिर गया हूं जरूर, लेकिन इतने पर भी रायसाहब ने दगा की, तो मैं भी शठता पर उतर आऊंगा। जो गरीबों को लूटता है, उसको लूटने के लिए अपनी आत्मा को बहुत समझाना न पड़ेगा।
सत्रह
गाँव में खबर फैल गई कि रायसाहब ने पंचों को बुलाकर खूब डांटा और इन लोगों ने जितने रुपये वसूल किए थे, वह सब इनके पेट से निकाल लिए। वह तो इन लोगों को जेहल भेजवा