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168 : प्रेमचंद रचनावली-6
 


वह उसे भांग बूटी में उड़ाता था। एक चमारिन से उसकी आशनाई हो गई थी, इसलिए अभी तक ब्याह न हुआ था। वह रहती अलग थी, पर सारा गांव यह रहस्य जानते हुए भी कुछ न बोल सकता था? हमारा धर्म है हमारा भोजन। भोजन पवित्र रहे, फिर हमारे धर्म पर कोई आंच नहीं आ सकती। रोटियां ढाल बनकर अधर्म से हमारी रक्षा करती हैं।

अब साझे की खेती होने से मातादीन को झुनिया से बातचीत करने का अवसर मिलने लगा। वह ऐसे दांव से आता, जब घर में झुनिया के सिवा और कोई न होता, कभी किसी बहाने से, कभी किसी बहाने से झुनिया रूपवती न थी, लेकिन जवान थी और उसकी चमारिन प्रेमिका से अच्छी थी। कुछ दिन शहर में रह चुकी थी, पहनना-ओढ़ना, बोलना-चालना जानती थी और लज्जाशील भी थी, जो स्त्री का सबसे बड़ा आकर्षण है। मातादीन कभी-कभी उसके बच्चे को गोद में उठा लेता और प्यार करता। झुनिया निहाल हो जाती थी।

एक दिन उसने झुनिया से कहा-तुम क्या देखकर गोबर के साथ आईं झूना?

झुनिया ने लजाते हुए कहा-भाग खींच लाया महराज, और क्या कहूं।

मातादीन दु:खी मन से बोला-बड़ा बेवफा आदमी है। तुम जैसी लच्छमी को छोड़कर न जाने कहां मारा-मारा फिर रहा है। चंचल सुभाव का आदमी है, इसी से मुझे संका होती है कि कहीं और न फंस गया हो। ऐसे आदमियों को तो गोली मार देनी चाहिए। आदमी का धरम है, जिसकी बांह पकड़े, उसे निभाए। यह क्या कि एक आदमी की जिंदगानी खराब कर दी और दूसरा घर ताकने लगे।

युवती रोने लगी। मातादीन ने इधर-उधर ताककर उसका हाथ पकड़ लिया और समझाने लगा-तुम उसकी क्यों परवा करती हो झूना, चला गया, चला जाने दो। तुम्हारे लिए किस बात की कमी है? रुपया-पैसा, गहना, कपड़ा, जो चाहो मुझसे लो।

झुनिया ने धीरे से हाथ छुड़ा लिया और पीछे हटकर-बोली-सब तुम्हारी दया है महाराज में तो कहीं दी न रही। घर से भी गई, यहां से भी गई। न माया मिली, न राम ही हाथ आए। दुनिया का रंग-ढंग न जानती थी। इसकी मीठी-मीठी बातें सुनकर जाल में फंस गई।

मातादीन ने गोबर की बुराई करनी शुरू की—वह तो निरा लफंगा है, घर का न घाट का। जब देखो, मां-बाप से लड़ाई। कहीं पैसा पा जाय, चट जुआ खेल डालेगा, चरस और गांजे में उसकी जान बसती थी, सोहदों के साथ घूमना, बहू-बेटियों को छेड़ना, यही उसका काम था। थानेदार साहब बदमासी में उसका चालान करने वाले थे, हम लोगों ने बहुत खुसामद की, तब जाकर छोड़ा। दूसरों के खेत-खलिहान से अनाज उड़ा लिया करता। कई बार तो खुद उसी ने पकड़ था, पर गांव-घर का समझकर छोड़ दिया।

सोना ने बाहर आकर कहा-भाभी, अम्मां ने कहा है, अनाज निकालकर धूप में डाल दो, नहीं चोकर बहुत निकलेगा। पंडित ने जैसे बखार में पानी डाल दिया हो।

मातादीन ने अपनी सफाई दी-मालूम होता है, तेरे घर में बरसात नहीं हुई। चौमासे में लकड़ी तक गीली हो जाती है, अनाज तो अनाज ही है।

यह कहता हुआ वह बाहर चला गया। सोना ने आकर उसका खेल बिगाड़ दिया।

सोना ने झुनिया से पूछा-मातादीन क्या करने आए थे?

झुनिया ने माथा सिकोड़कर कहा-पगहिया मांग रहे थे। मैंने कह दिया, यहां पगहिया