पृष्ठ:गोदान.pdf/१७८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
178 : प्रेमचंद रचनावली-6
 


बस ठन गई। खन्ना गरजने लगे। गोविन्दी बरसने लगी। उनके बीच में मालती का नाम आ जाना मानो लड़ाई का अल्टिमेटम था।

खन्ना ने सारे कागजों को जमीन पर फेंककर कहा-तुम्हारे साथ जिंदगी तलख हो गई।

गोविन्दी ने नुकीले स्वर में कहा-तो मालती से ब्याह कर लो न। अभी क्या बिगड़ा है, अगर वहां दाल गले।

'तुम मुझे क्या समझती हो?'

'यही कि मालती तुम-जैसों को अपना गुलाम बनाकर रखना चाहती है, पति बनाकर नहीं।'

'तुम्हारी निगाह में मैं इतना जलील हूं?'

और उन्होंने इसके विरुद्ध प्रमाण देना शुरू किया। मालती जितना उनका आदर करती है, उतना शायद ही किसी का करती हो। रायसाहब और राजा साहब को मुंह तक नहीं लगाती, लेकिन उनसे एक दिन भी मुलाकात न हो, तो शिकायत करती है...

गोविन्दी ने इन प्रमाणों को एक फूंक में उड़ा दिया-इसीलिए कि वह तुम्हें सबसे बड़ा आंखों का अंधा समझती है, दूसरों को इतनी आसानी से बेवकूफ नहीं बना सकती।

खन्ना ने डींग मारी-वह चाहें तो आज मालती से विवाह कर सकते हैं। आज, अभी...

मगर गोविन्दी को बिल्कुल विश्वास नहीं-तुम सात जन्म नाक रगड़ो, तो भी वह तुमसे विवाह न करेगी! तुम उसके टट्टू हो, तुम्हें घास खिलाएगी, कभी-कभी तुम्हारा मुंह सहलाएगी, तुम्हारे पुट्ठों पर हाथ फेरेगी, लेकिन इसीलिए कि तुम्हारे ऊपर सवारी गांठे। तुम्हारे जैसे एक हजार बुद्धू उसकी जेब में हैं।

गोविन्दी आज बहुत बढ़ी जाती थी। मालूम होता है, आज वह उनसे लड़ने पर तैयार होकर आई है। डाक्टर के बुलाने का तो केवल बहाना था। खन्ना अपनी योग्यता और दक्षता और पुरुषत्व पर इतना बड़ा आक्षेप कैसे सह सकते थे।

'तुम्हारे खयाल में मैं बुद्धु और मूर्ख हूं, तो ये हजारों क्यों मेरे द्वार पर नाक रगड़ते हैं? कौन राजा या ताल्लुकेदार है, जो मुझे दंडवत नहीं करता? सैकड़ों को उल्लू बनाकर छोड़ दिया।'

'यही तो मालती की विशेषता है कि जो औरों को सीधे उस्तरे से मूंड़ता है, उसे वह उल्टे छुरे से मूंडती है।'

'तुम मालती की चाहे जितनी बुराई करो, तुम उसकी पांव की धूल भी नहीं हो।'

'मेरी दृष्टि में यह वेश्याओं से भी गई-बीती है, क्योंकि वह परदे की आड़ से शिकार खेलती है।'

दोनों ने अपने-अपने अग्निबाण छोड दिए। खन्ना ने गाविन्दी को चाहे कोई दूसरी कठोर से कठोर बात कही होती, उसे इतनी बुरी न लगती, पर मालती से उसकी यह घृणित तुलना उसकी सहिष्णुता के लिए भी असह्य थी। गोविन्दी ने भी खन्ना को चाहे जो कुछ कहा होता, वह इतने गर्म न हाते, लेकिन मालती का यह अपमान वह नहीं सह सकते। दोनों एक-दूसरे के कोमल स्थलों से परिचित थे। दोनों के निशाने ठीक बैठे और दोनों तिलमिला उठे। खन्ना की आंखें लाल हो गईं। गोविन्दी का मुंह लाल हो गया। खन्ना आवेश में उठे और उसके दोनों कान पकड़कर जोर से ऐंठे और तीन तमाचे लगा दिए। गोविन्दी रोती हुई अंदर चली