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गोदान : 181
 


मेहता ने मुस्कराकर कहा-मेरी बात न चलाइए। धोबी का कुत्ता, न घर का न घाट का। लाइए, मैं बच्चे को चुप करा दूं।

'आपने यह कला कब सीखी?'

'अभ्यास करना चाहता हूं। इसकी परीक्षा जो होगी।'

'अच्छा! परीक्षा के दिन करीब आ गये?'

'यह तो मेरी तैयारी पर है। जब तैयार हो जाऊंगा, बैठ जाऊंगा। छोटी-छोटी उपाधियों के लिए हम पढ़-पढ़कर आंखें फोड़ लिया करते हैं। यह तो जीवन-व्यापार की परीक्षा है।'

'अच्छी बात है, मैं भी देखूंगी आप किस ग्रेड में पास होते हैं।'

यह कहते हुए उसने बच्चे को उनकी गोद में दे दिया। उन्होंने बच्चे को कई बार उछाला, तो वह चुप हो गया। बालकों की तरह डींग मारकर बोले--देखा आपने, कैसा मन्तर के जोर से चुप कर दिया। अब मैं भी कहीं से बच्चा लाऊंगा।

गोविन्दी ने विनोद किया--बच्चा ही लाइएगा, या उसकी माँ भी।

मेहता ने विनोद-भरी निराशा से सर हिलाकर कहा--ऐसी औरत तो कहीं मिलती ही नहीं।

'क्यों, मिस मालती नहीं हैं? सुन्दरी, शिक्षिता, गुणवती, मनोहारिणी, और आप क्या चाहते हैं?'

'मिस मालती में वह एक बात भी नहीं है जो मैं अपनी स्त्री में देखना चाहता हूं।'

गोविन्दी ने इस कुत्सा का आनन्द लेते हुए कहा--उसमें क्या बुराई है, सुनूं। भौंरे तो हमेशा घेरे रहते हैं। मैंने सुना है, आजकल पुरुषों को ऐसी ही औरतें पसन्द आती हैं। मेहता ने बच्चे के हाथों से अपनी मूँछों की रक्षा करते हुए कहा--मेरी स्त्री कुछ और ही ढंग की होगी। वह ऐसी होगी, जिसकी मैं पूजा कर सकूंगा।

गोविन्दी अपनी हँसी न रोक सकी--तो आप स्त्री नहीं, कोई प्रतिमा चाहते हैं। स्त्री तो ऐसी आपको शायद कहीं मिले।

'जी नहीं, ऐसी एक देवी इसी शहर में है।'

'सच! मैं भी उसके दर्शन करती, और उसी तरह बनने की चेष्टा करती।'

'आप उसे खूब जानती हैं। वह एक लखपती की पत्नी है, पर विलास को तुच्छ समझती है, जो उपेक्षा और अनादर सह कर भी अपने कर्तव्य से विचलित नहीं होती, जो मातृत्व की वेदी पर अपने को बलिदान करती है, जिसके लिए त्याग ही सबसे बड़ा अधिकार है, और जो इस योग्य है की उसकी प्रतिमा बनाकर पूजी जाय।'

गोविन्दी के हृदय में आनन्द का कम्पन हुआ। समझकर भी न समझने का अभिनय करते हुए बोली-ऐसी स्त्री की आप तारीफ करते हैं। मेरी समझ में तो वह दया के योग्य है।

मेहता ने आश्चर्य से कहा-दया के योग्य! आप उसका अपमान करती हैंं। वह आदर्श नारी है और जो आदर्श नारी हो सकती है, वही आदर्श पत्नी भी हो सकती है।

'लेकिन वह आदर्श इस युग के लिए नहीं है।'

'वह आदर्श सनातन है और अमर है। मनुष्य उसे विकृत करके अपना सर्वनाश कर रहा है।'

गोविन्दी का अन्तःकरण खिला जा रहा था। ऐसी फुरेरियां वहां कभी न उठीं थीं। जितने आदमियों से उसका परिचय था, उनमें मेहता का स्थान सबसे ऊँचा था। उनके मुख से यह