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पृष्ठ:गोदान.pdf/१९३

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गोदान : 193
 


था। सुन-सुनकर जान सूखी जाती थी। कहां रहे इतने दिन?

गोबर ने शरमाते हुए कहा-कहीं दूर नहीं गया था अम्मां, यहां लखनऊ में तो था।

'और इतने नियरे रहकर भी कभी एक चिट्ठी न लिखी?'

उधर सोना और रूपा भीतर गोबर का सामान खोलकर चीज का बांट-बखरा करने में लगी हुई थीं, लेकिन झुनिया दूर खड़ी थी। उसके मुख पर आज मान का शोख रंग झलक रहा है। गोबर ने उसके साथ जो व्यवहार किया है, आज वह उसका बदला लेगी। असामी को देखकर महाजन उससे वह रुपये वसूल करने को भी व्याकुल हो रहा है, जो उसने बट्टेखाते में डाल दिए थे। बच्चा उन चीजों की ओर लपक रहा था और चाहता था, सब-का-सब एक साथ मुंह में डाल ले, पर झुनिया उसे गोद से उतरने न देती थी।

सोना बोली-भैया तुम्हारे लिए ऐना-कंघी लाए हैं भाभी।

झुनिया ने उपेक्षा भाव से कहा-मुझे ऐना-कंघी न चाहिए। अपने पास रखे रहें।

रूपा ने बच्चे की चमकीली टोपी निकाली-ओ हो। यह तो चुन्नू की टोपी है। और उसे बच्चे के सिर पर रख दिया।

झुनिया ने टोपी उतारकर फेंक दी और सहसा गोबर को अंदर आते देखकर वह बालक को लिए अपनी कोठरी में चली गई। गोबर ने देखा, सारा सामान खुला पड़ा है। उसका जी तो चाहता है, पहले झुनिया से मिलकर अपना अपराध क्षमा कराए, लेकिन अंदर जाने का साहस नहीं होता। वहीं बैठ गया और चीजें निकाल-निकाल हर एक को देने लगा। मगर रूपा इसलिए फूल गई कि उसके लिए चप्पल क्यों नहीं आए, और सोना उसे चिढ़ाने लगी, तू क्या करेगी चप्पल लेकर, अपनी गुड़िया से खेल। हम तो तेरी गुड़िया देखकर नहीं रोते, तू मेरी चप्पल देखकर क्यों रोती है? मिठाई बांटने की जिम्मेदारी धनिया ने अपने ऊपर ली। इतने दिनों के बाद लड़का कुशल से घर आया है। वह गांव-भर में बैना बंटवाएगी। एक गुलाबजामुन रूपा के लिए ऊंट के मुंह में जीरे के समान था। वह चाहती थी, हांडी उसके सामने रख दी जाय वह कूद-कूद खाय।

अब संदूक खुला और उसमें से साड़ियां निकलने लगीं। सभी किनारदारी थीं, जैसी पटेश्वरी लाला के घर में पहनी जाती हैं, मगर हैं बड़ी हल्की। ऐसी महीन साड़ियां भला कै दिन चलेंगी। बड़े आदमी जितनी महीन साड़ियां चाहे पहनें। उनकी मेहरियों को बैठने और सोने के सिवा और कौन काम है। यहां तो खेत-खलिहान सभी कुछ है। अच्छा होरी के लिए धोती के अतिरिक्त एक दुपट्टा भी है।

धनिया प्रसन्न होकर बोली-यह तुमने बड़ा अच्छा काम किया बेटा। इनका दुपट्टा बिल्कुल तार-तार हो गया था।

गोबर को उतनी देर में घर की परिस्थिति का अंदाज हो गया था। धनिया की साड़ी में कई पैबंद लगे हुए थे। सोना की साड़ी सिर पर फटी हुई थी और उसमें से उसके बाल दिखाई दे रहे थे। रूपा की धोती में चारों तरफ झालरें-सी लटक रही थीं। सभी के चेहरे रूखे, किसी की देह पर चिकनाहट नहीं। जिधर देखो, विपन्नता का साम्राज्य था।

लड़कियां तो साड़ियों में मगन थी। धनिया को लड़के के लिए भोजन की चिंता हुई। घर में थोड़ा-सा जौ का आटा सांझ के लिए संचकर रखा हुआ था। इस वक्त तो चबेने पर कटती थी, मगर गोबर अब वह गोबर थोड़े ही है। उससे जौ का आटा खाया भी जायगा? परदेस में