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गोदान : 197
 


गोबर ने बनाया-तुम्हारे घर किस बात की कमी है महाराज, जिस जजमान के द्वार पर जाकर खड़े हो जाओ, कुछ न कुछ मार ही लाओगे। जनम में लो, मरन में लो, सादी में लो, गमी में लो, खेती करते हो, लेन-देन करते हो, दलाली करते हो, किसी से कुछ भूल-चूक हो जाए, तो डांड़ लगाकर उसका घर लूट लेते हो। इतनी कमाई से पेट नहीं भरता? क्या करोगे बहुत-सा धन बटोरकर कि साथ ले जाने की कोई जुगुत निकाल ली है?

दातादीन ने देखा, गोबर कितनी ढिठाई से बोल रहा है, अदब और लिहाज जैसे भूल गया। अभी शायद नहीं जानता कि बाप मेरी गुलामी कर रहा है। सच है, छोटी नदी को उमड़ते देर नहीं लगती, मगर चेहरे पर मैल नहीं आने दिया। जैसे बड़े लोग बालकों से मूंछें उखड़वाकर भी हंसते हैं, उन्होंने भी इस फटकार को हंसी में लिया और विनोद-भाव से बोले-लखनऊ की हवा खा के तू बड़ा चंट हो गया है गोबर। ला, क्या कमा के लाया है, कुछ निकाल। सच कहता हूं गोबर, तुम्हारी बहुत याद आती थी। अब तो रहोगे कुछ दिन?

'हां, अभी तो रहूंगा कुछ दिन। उन पंचों पर दावा करना है, जिन्होंने डांड़ के बहाने मेरे डेढ़ सौ रुपये हजम किए हैं। देखूं, कौन मेरा हुक्का-पानी बंद करता है और कैसे बिरादरी मुझे बात बाहर करती है?

यह धमकी देकर वह आगे बढ़ा। उसकी हेकड़ी ने उसके युवक भक्तों को रोब में डाल दिया था।

एक ने कहा-कर दो नालिस गोबर भैया। बुड्ढा काला सांप है-जिसके काटे का मंतर नहीं। तुमने अच्छी डांट बताई। पटवारी के कान भी जरा गरमा दो। बड़ा मुतफन्नी है दादा। बाप बेटे में आग लगा दे, भाई-भाई में आग लगा दे। कारिंदे से मिलकर असामियों का गला काटता है। अपने खेत पीछे जोतो, पहले उसके खेत जोत दो। अपनी सिंचाई पीछे करो, पहले उसकी सिंचाई कर दो।

गोबर ने मूंछों पर ताव देकर कहा-मुझसे क्या कहते हो भाई, साल-भर में भूल थोड़े ही गया। यहां मुझे रहना ही नहीं है, नहीं एक-एक को नचाकर छोड़ता। अबकी होलो धूम-धाम से मना और होली का स्वांग बनाकर इन सबों को खूब भिगो-भिगो कर लगाओ। होली का प्रोग्राम बनने लगा। खूब भंग घुटे, दूधिया भी, रंगीन भी, और रंगों के साथ कालिख भी बने और मुखियों के मुंह पर कालिख ही पोती जाए। होली में कोई बोल ही क्या सकता है। फिर स्वांग निकले और पंचों की भद्द उड़ाई जाए।रुपये-पैसे की कोई चिंता नहीं। गोबर भाई कमाकर लाए हैं।

भोजन करके गोबर भोला से मिलने चला। जब तक अपनी जोड़ी लाकर अपने द्वार पर बांध न दे, उसे चैन नहीं। वह लड़ने-मरने को तैयार था।

होरी ने कातर स्वर में कहा-रार मत बढ़ाओ बेटा। भोला गोई ले गए, भगवान् उनका भला करे, लेकिन उनके रुपये तो आते ही थे।

गोबर ने उत्तेजित होकर कहा-दादा, तुम बीच में मत बोलो। उनकी गाय पचास की थी। हमारी गोई डेढ़ सौ में आई थी। तीन साल हमने जोती। फिर भी डेढ़ सौ की थी ही। वह अपने रुपये के लिए दावा करते, डिगरी कराते, या जो चाहते करते, हमारे द्वार से जोड़ी क्यों खोल ले गए? और तुम्हें क्या कहूं? इधर गोई खो बैठे, उधर डेढ़ सौ रुपये डांड़ के भरे। यह है गऊ होने का फल। मेरे सामने जोड़ी ले जाते, तो देखता। तीनों को यहीं जमीन पर सुला देता। और पंचों से तो बात