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पृष्ठ:गोदान.pdf/२००

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200 : प्रेमचंद रचनावली-6
 


'होरी से कहो, अब बैठ के ‘राम-राम करें।'

'कहता तो हूं, लेकिन जब उनसे बैठा जाय।'

‘वहां किसी बैद से तो तुम्हारी जान-पहचान होगी। खासी बहुत दिक कर रही है। हो सके तो कोई दवाई भेज देना।'

'एक नामी बैद तो मेरे पड़ोस ही में रहते हैं। उनसे हाल कहके दबा बनवाकर भेज दूंगा। खांसी रात को जोर करती है कि दिन को?'

'नहीं बेटा, रात को। आंख नहीं लगती। नहीं वहां कोई डौल हो, तो मैं भी वहीं चलकर रहूं। यहां तो कुछ परता नहीं पड़ता।'

'रोजगार का जो मजा तो वहां है काका, यहां क्या होगा? यहां रुपये का दस सेर दूध भी कोई नहीं पूछता। हलवाइयों के गले लगाना पड़ता है। वहां पांच-छः सेर के भाव से चाहो तो घड़ी में मनों दूध बेच लो।'

जंगी गोबर के लिए दूधिया शर्बत बनाने चला गया था। भोला ने एकांत देखकर कहा-और भैया, अब इस जंजाल से जी ऊब गया है। जंगी का हाल देखते ही हो। कामता दूध लेकर जाता है। सानी-पानी, खोलना-बांधना सब मुझे करना पड़ता है। अब तो यही जी चाहता है कि सुख से कहीं एक रोटी खाऊं और पड़ा रहूं। कहां तक हाय-हाय करूं। रोज लड़ाई-झगड़ा। किस-किसके पांव सहलाऊं? खांसी आती है, रात को उठा नहीं जाता, पर कोई एक लोटे पानी को भी नहीं पूछता। पगहिया टूट गई है, मुदा किसी को इसकी सुधि नहीं है। जब मैं बनाऊंगा तभी बनेगी।

गोबर ने आत्मीयता के साथ कहा-तुम चलो लखनऊ काका। पांच सेर का दूध बेचो, नगद। कितने ही बड़े-बड़े अमीरों से मेरी जान-पहचान है। मन-भर दूध की निकासी का जिम्मा मैं लेता हूं। मेरी चाय की दुकान भी है। दस सेर दूध तो मैं ही नित लेता हूं। तुम्हें किसी तरह का कष्ट न होगा।

जंगी दूधिया शर्बत ले आया। गोबर ने एक गिलास शर्बत पीकर कहा-तुम तो खाली सांझ-सबेरे चाय को दूकान पर बैठ जाओ काका, तो एक रुपया कहीं नहीं गया है।

भोला ने एक मिनट के बाद संकोच-भरे भाव से कहा-क्रोध में बेटा, आदमी अंधा हो जाता है। मैं तुम्हारी गोई खोल लाया था। उसे लेते जाना। यहां कौन खेती-बारी होती है।

'मैंने तो एक नई गोई ठीक कर ली है काका।'

'नहीं-नहीं, नई गोई लेकर क्या करोगे? इसे लेते जाओ।'

'तो मैं तुम्हारे रुपये भिजवा दूंगा।'

'रुपये कहीं बाहर थोड़े ही हैं बेटा, घर में ही तो हैं। बिरादरी का ढकोसला है, नहीं तुममें और हममें कौन भेद है? सच पूछो तो मुझे खुस होना चाहिए था कि झुनिया भले घर में है, और आराम से है। और मैं उसके खून का प्यासा बन गया था।'

संध्या के समय गोबर यहां से चला, तो गोई उसके साथ थी और दही की दो हाड़िया लिए जंगी पीछे-पीछे आ रहा था।