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गोदान : 205
 


'बेटा, जब तक मैं जीता हूं, मुझे अपने रस्ते चलने दो। जब मैं मर जाऊं, तो तुम्हारी जो इच्छा हो, वह करना।'

'तो फिर तुम्हीं देना। मैं तो अपने हाथों अपने पांव में कुल्हाड़ी न मारूंगा। मेरा गधापन था कि तुम्हारे बीच में बोला तुमने खाया है, तुम भरो। मैं क्यों अपनी जान दूं?'

यह कहता हुआ गोबर भीतर चला गया। झुनिया ने पूछा-आज सबेर-सबेरे दादा से क्यों उलझ पड़े?

गोबर ने सारा वृत्तांत कह सुनाया और अंत में बोला-इनके ऊपर रिन का बोझ इसी तरह बढ़ता जायगा। मैं कहां तक भरूंगा? उन्होंने कमा-कमाकर दूसरों का घर भरा है। मैं क्यों उनकी खोदी हुई खंदक में गिरूं? इन्होंने मुझसे पूछकर करज नहीं लिया।न मेरे लिए लिया। मैं उसका देनदार नहा हूं।

उधर मुखियों में गोबर को नीचा दिखाने के लिए षड्यन्त्र रचा जा रहा था। यह लौंडा शिकंजे मे न कसा गया, तो गांव में ऊधम मचा देगा। प्यादे से फर्जी हो गया है न, टेढ़े तो चलेगा ही। जाने कहांसे इतना कानून सीख आया है? कहता है, रुपये सैकडे़ सूद से बेसी न दूंगा। लेना हो लो, नहीं अदालत जाओ। रात इसने सारे गांव के लौंडों को बटोरकर कितना अनर्थ किया। लेकिन मुखियों में भी ईर्ष्या की कमी न थी। सभी अपने बराबर वालों के परिहास पर प्रसन्न थे। पटेश्वरी और नोखेराम में बातें हो रही थीं। पटेश्वरी ने कहा-मगर सबों को घर-घर की रत्ती रत्ती का हाल मालूम है। झिंगुरीसिंह को तो सबों ने ऐसा रगेदा कि कुछ न पूछो। दोनों अकुशाइनों की बातें सुन-सुनकर लोग हंसी के मारे लोट गए।

नोखेराम ने ठट्टा मारकर कहा-मगर नकल सच्ची थी। मैंने कई बार उनकी छोटी बेगम को द्वार पर खड़े लौंडों से हंसी करते देखा है।

'और बड़ी रानी काजल और सेंदूर और महावर लगाकर जवान बनी रहती हैं।'

'दोनों में रात दिन छिड़ी रहती है। झिंगुरी पक्का बेहया है। कोई दूसरा होता तो पागल हो जाता।'

'सुना, तुम्हारी बड़ी भद्दी नकल की। चमरिया के घर में बंद करके पिटवाया।'

'मैं तो बचा पर बकाया लगान का दावा करके ठीक कर दूंगा। वह भी क्या याद करेंगे कि किसी से पाला पड़ा था।'

'लगान तो उसने चुका दिया है न?'

'लेकिन रसीद तो मैंने नहीं दी। सबूत क्या है कि लगान चुका दिया? और यहां कौन हिसाब-किताब देखता है? आज ही प्यादा भेजकर बुलाता हूं।'

होरी और गोबर दोनों ऊख बोने के लिए खेत सींच रहे थे। अबकी ऊख की खेती होने की आशा तो थी नहीं, इसलिए खेत परती पड़ा हुआ था। अब बैल आ गए हैं तो ऊख क्यों न बोई जाए।

मगर दोनों जैसे छत्तीस बने हुए थे। न बोलते थे, न ताकते थे। होरी बैलों को हांक रहा था और गोबर मोट ले रहा था। सोना और रूपा दोनों खेत में पानी दौड़ा रही थीं कि उनमें झगड़ा हो गया। विवाद का विषय यह था कि झिंगुरीसिंह की छोटी ठकुराइन पहले खुद खाकर पति को खिलाती हैं या पति को खिलाकर तब खुद खाती है। सोना कहती थी, पहले वह खुद खाती है। रूपा का मत इसके प्रतिकूल था।