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गोदान : 207
 


रह सकता। जब घर में उसकी कोई पूछ नहीं है, तो वह क्यों रहे। वह लेन-देन के मामले में बोल नहीं सकता। लड़कियों को जरा मार दिया तो लोग ऐसे जामे के बाहर हो गए, मानो वह बाहर का आदमी है। तो इस सराय में वह न रहेगा।

दोनों भोजन करके बाहर आए थे कि नोखेराम के प्यादे ने आकर कहा-चलो, कारिंदा साहब ने बुलाया है।

होरी ने गर्व से कहा-रात को क्यों बुलाते हैं, मैं तो बाकी दे चुका हूं।

प्यादा बोला-मुझे तो तुम्हें बुलाने का हुक्म मिला है। जो कुछ अरज करना हो, वहीं चलकर करना।

होरी की इच्छा न थी, मगर जाना पड़ा। गोबर विरक्त-सा बैठा रहा। आध घंटे में होरी लौटा और चिलम भरकर पीने लगा। अब गोबर से न रहा गया। पूछा-किस मतलब से बुलाया था?

होरी ने भर्राई हुई आवाज में कहा-मैंने पाई-पाई लगान चुका दिया। वह कहते हैं, तुम्हारे ऊपर दो साल का बाकी है। अभी उस दिन मैंने कुछ बेची, तो पचीस रुपये वहीं उनको दे दिए और आज वह दो साल का बाकी निकालते हैं। मैंने कह दिया, मैं एक धेला न दूंगा।

गोबर ने पूछा-तुम्हारे पास रसीद होगी?

'रसीद कहां देते हैं?'

'तो तुम बिना रसीद लिए रुपये देते ही क्यों हो?'

'मैं क्या जानता था, यह लोग बेईमानी करेंगे। यह सब तुम्हारी करनी का फल है। तुमने रात को उनकी हंसी उड़ाई, यह उसी का दंड है। पानी में रहकर मगर से बैर नहीं किया जाता। सूद लगाकर सत्तर रुपये बाकी निकाल दिए। ये किसके घर से आएंगे?'

गोबर ने सफाई देते हुए कहा-तुमने रसीद ले ली होती तो मैं लाख उनकी हंसी उड़ाता, तुम्हारा बाल भी बांका न कर सकते। मेरी समझ में नहीं आता कि लेन-देन में तुम सावधानी से क्यों काम नहीं लेते। यों रसीद नहीं देते, तो डाक से रुपया भेजो। यही तो होगा, एकाध रुपया महसूल पड़ जाएगा। इस तरह की धांधली तो न होगी।'

'तुमने यह आग न लगाई होती, तो कुछ न होता। अब तो सभी मुखिया बिगड़े हुए हैं। बेदखली की धमकी दे रहे हैं। दैव जाने कैसे बेड़ा पार लगेगा।'

'मैं जाकर उनसे पूछता हूं।'

'तुम जाकर और आग लगा दोगे।'

'अगर आग लगानी पड़ेगी, तो आग लगा दूंगा। यह बेदखली करते हैं, करें। मैं उनके हाथ में गंगाजली रखकर अदालत में कसम खिलाऊंगा। तुम दुम दबाकर बैठे रहो। मैं इसके पीछे जान लड़ा दूंगा। किसी का एक पैसा दबाना नहीं चाहता, न अपना एक पैसा खोना चाहता हूं।'

वह उसी वक्त उठा और नोखेराम की चौपाल में जा पहुंचा। देखा तो सभी मुखिया लोगों का केबिनेट बैठा हुआ है। गोबर को देखकर सब-के-सब सतर्क हो गए। वातावरण में षड्यंत्र की-सी कुंठा भरी हुई थी।

गोबर ने उत्तेजित कठ से पूछा-यह क्या बात है कारिंदा साहब, कि आपको दादा ने हाल तक का लगान चुकता कर दिया और आप अभी दो साल का बाकी निकाल रहे हैं? यह कैसा गोलमाल है।