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पृष्ठ:गोदान.pdf/२११

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गोदान : 211
 


न जाने देती थी और धनिया आपे से बाहर थी। शायद इसलिए भी कि झुनिया अब कमाऊ पुरुष की स्त्री थी और उसे प्रसन्न में रखने में ज्यादा मसलहत थी।

तब होरी ने आंगन में आकर कहा-मैं तेरे पैरों पड़ता हूं धनिया, चुप रह। मेरे मुंह में कालिख मत लगा। हां, अभी मन न भरा हो तो और सुन।

धनिया फुंकार मारकर उधर दौड़ी-तुम भी मोटी डाल पकड़ने चले। मैं ही दासी हूं। यह तो मेरे ऊपर फूल बरसा रही है?

संग्राम का क्षेत्र बदल गया।

'जो छोटों के मुंह लगे, वह छोटा।'

धनिया किस तर्क से झुनिया को छोटा मान ले?

होरी ने व्यथित कंठ से कहा-अच्छा, वह छोटी नहीं बड़ी सही। जो आदमी नहीं रहना चाहता, क्या उसे बांधकर रखेगी? मां-बाप का धरम है, लड़के को पाल-पोसकर बड़ा कर देना। वह हम कर चुके। उनके हाथ-पांव हो गए। अब तू क्या चाहती है, वे दाना-चारा लाकर खिलाएं। मां बाप का धरम सोलहों आना लड़कों के साथ है। लड़कों का मां-बाप के साथ एक आना भी धरम नहीं है। जो जाता है, उसे असीस देकर विदा कर दे। हमारा भगवान् मालिक है। जो कुछ भोगना बदा है, भोगेंगे, चालीस सात सैंतालीस साल इसी तरह रोते-धोते कट गए। दस-पांच साल हैं, वह भर से यों ही कट जायेंगे।

उधर गोबर जाने की तैयारी कर रहा था। इस घर का पानी भी उसके लिए हराम है। माता हाकर जब उसे ऐसी-ऐसी बातें कहेतो अब वह उसका मुंह भी न देखेगा।

देखते ही देखते उसका बिस्तर बंध गया। झुनिया ने भी चुंदरी पहन ली। चुन्नू भी टोप और फ्राक पहनकर राजा बन गया।

होरी ने आर्द्र कंठ से कहा-बेटा तुमसे कुछ कहने का मुंह तो नहीं है, लेकिन कलेजा नही मानता। क्या जरा जाकर अपनी अभागिनी माता के पांव छू लोगे, तो कुछ बुरा होगा? जिस माता की कोख से जनम लिया और जिसका रकत पीकर पले हो, उसके साथ इतना भी नहीं कर सकते?

गोबर ने मुंह फेरकर कहा-मैं उसे अपनी माता नहीं समझता।

होरी ने आंखों में आंसू बहाकर कहा-जैसी तुम्हारी इच्छा। जहां हो, सुखी रहो।

झुनिया ने सास के पास जाकर उसके चरणों को आंचल से छुआ। धनिया के मुंह से आसीस का एक शब्द भी न निकला। उसने आंखें उठाकर देखा भी नहीं। गोबर बालक को गोद लिए आगे-आगे था। झुनिया बिस्तर बगल में दबाए पीछे। एक चमार का लड़का संदूक लिए था। गांव के कई स्त्री-पुरुष गोबर को पहुंचाने गांव के बाहर तक आए।

और धनिया बैठी रो रही थी, जैसे कोई उसके हृदय को आरे से चीर रहा हो। उसका मातृत्व उस घर के समान हो रहा था, जिसमें आग लग गई हो और सब कुछ भस्म हो गया हो। बैठकर रोने के लिए भी स्थान न बचा हो।