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222 : प्रेमचंद रचनावली-6
 


कौड़ी भी न दूंगा। तुम आज ही मेहता को इंकारी खत लिख दो।'

गोविन्दी ने एक क्षण सोचकर कहा-तो तुम्हीं लिख दो न।

'मैं क्यों लिखूं? बात की तुमने, लिखूं मैं?'

'डाक्टर साहब कारण पूछेंगे, तो क्या बताऊंगी?'

'बताना अपना सिर और क्या। मैं इस व्यभिचारशाला को एक धेला भी नहीं देना चाहता।'

'तो तुम्हें देने को कौन कहता है?'

खन्ना ने होंठ चबाकर कहा-कैसी बेसमझी की-सी बातें करती हो?तुम वहां नींव रखोगी और कुछ दोगी नहीं, तो संसार क्या कहेगा?

गोविन्दी ने जैसे संगीन की नोक पर कहा-अच्छी बात है, लिख दूंगी।

'आज ही लिखना होगा।'

'कह तो दिया लिखूंगी।'

खन्ना बाहर आए और डाक देखने लगे। उन्हें दफ्तर जाने में देर हो जाती थी, तो चपरासी घर पर ही डाक दे जाता था। शक्कर तेज हो गई। खन्ना का चेहरा खिल उठा। दूसरी चिट्ठी खोली ऊख की दर नियत करने के लिए जो कमेटी बैठी थी, उसने तय कर दिया कि ऐसा नियंत्रण नहीं किया जा सकता। धत् तेरी की। वह पहले यही बात कर रहे थे, पर इस अग्निहोत्री ने गुल मचाकर जबरदस्ती कमेटी बैठाई। आखिर बचा के मुंह पर थप्पड़ लगा। यह मिल वालों और किसानों के बीच का मुआमला है। सरकार इसमें दखल देने वाली कौन?

सहसा मिस मालती कार से उतरीं। कमल की भांति खिली, दीपक की भांति दमकती, स्फूर्ति और उल्लास की प्रतिमा-सी-निश्शंक, निर्द्वंद्व, मानो उसे विश्वास है कि संसार में उसके लिए आदर और सुख का द्वार खुला हुआ है। खन्ना ने बरामदे में आकर अभिवादन किया।

मालतो ने पूछा-क्या यहां मेहता आए थे?

'हां, आए तो थे।'

'कुछ कहा, कहां जा रहे हैं?'

'यह तो कुछ नहीं कहा।'

'जाने कहां डुबकी लगा गए। मैं चारों तरफ घूम आई। आपने व्यायामशाला के लिए कितना दिया?'

खन्ना ने अपराधी-स्वर में कहा मैंने अभी इस मुआमले को समझा ही नहीं।

मालती ने बड़ी-बड़ी आंखों से उन्हें तरेरा, मानों सोच रही हो कि उन पर दया करे या रोष।

'इसमें समझने की क्या बात थी, और समझ लेते आगे-पीछे, इस वक्त तो कुछ देने की बात थी। मैंने मेहता को ठेलकर यहां भेजा। बेचारे डर रहे थे कि आप न जाने क्या जवाब दें। आपकी इस कंजूसी का क्या फल होगा, आप जानते हैं? यहां के व्यापारी समाज से कुछ न मिलेगा। आपने शायद मुझे अपमानित करने का निश्चय कर लिया है। सबकी सलाह थी कि लेडी विलसन बुनियाद रखें। मैंने गोविन्दी देवी का पक्ष लिया और लड़कर सबको राजी किया और अब आप फर्माते हैं, आपने इस मुआमले को समझा ही नहीं। आप बैंकिंग की गुत्थियां समझते हैं, पर इतनी मोटी बात आपकी समझ में न आई। इसका अर्थ इसके सिवा और कुछ नहीं है, कि तुम मुझे लज्जित करना चाहते हो। अच्छी बात है, यही सही।'