है?
'यह तो ठीक है, लेकिन सरकार भी इन बातों को खूब समझती है। इसकी भी कोई रोक निकालेगी, देख लेना।'
'इसकी कोई रोक हो ही नहीं सकती।'
'अच्छा, अगर वह सर्त कर दे, जब तक स्टांप पर गांव के मुखिया या कारिंदा के दसखत न होंगे, वह पक्का न होगा, तब क्या करोगे?॑'
'असामी को सौ बार गरज होगी, मुखिया को हाथ-पांव जोड़ के लाएगा और दसखत कराएगा। हम तो एक-चौथाई काट ही लेंगे।'
'और जो फंस जाओ। जाली हिसाब लिखा और गए चौदह साल को।'
झिंगुरीसिंह जोर से हंसा-तुम क्या कहते हो पंडित, क्या तब संसार बदल जाएगा? कानून और न्याय उसका है, जिसके पास पैसा है। कानून तो है कि महाजन किसी असामी के साथ कड़ाई न करे, कोई जमींदार किसी कास्तकार के साथ सख्ती न करे, मगर होता क्या है। रोज ही देखते हो। जमींदार मुसक बंधवा के पिटवाता है और महाजन लात और जूते से बात करता है। जो किसान पोढ़ा है, उससे न जमींदार बोलता है, न महाजन। ऐसे आदमियों से हम मिल जाते हैं और उनकी मदद से दूसरे आदमियों की गर्दन दबाते हैं। तुम्हारे ही ऊपर रायसाहब के पांच सौ रुपये निकलते हैं, लेकिन नोखेराम में है इतनी हिम्मत कि तुमसे कुछ बोले? वह जानते हैं तुमसे मेल करने ही में उनका हित है। किस असामी में इतना बूता है कि रोज अदालत दौड़े? सारा कारोबार इसी तरह चला जायगा, जैसे चल रहा है। कचहरी अदालत उसी के साथ है, जिसके पास पैसा है। हम लोगों को घबड़ाने की कोई बात नहीं।
यह कहकर उन्होंने खलिहान का एक चक्कर लगाया और फिर आकर खाट पर बैठते हुए बोले-हां, मतई के ब्याह का क्या हुआ? हमारी सलाह तो है कि उसका ब्याह कर डालो। अब तो बड़ी बदनामी हो रही है।
दातादीन को जैसे ततैया ने काट खाया। इस आलोचना का क्या आशय था, वह खूब समझते थे। गर्म होकर बोले- पीठ पीछे आदमी जो चाहे बके, हमारे मुंह पर कोई कुछ कहे, तो उसकी मूंछें उखाड़ लूं। कोई हमारी तरह नेमी बन तो ले। कितनों को जानता हूं, जो कभी संध्या-बंदन नहीं करते, न उन्हें धरम से मतलब न करम से, न कथा से मतलब न पुरान से। वह भी अपने को ब्राह्मण कहते हैं। हमारे ऊपर क्या हंसेगा कोई, जिसने अपने जीवन में एक एकादसी भी नागा नहीं की, कभी बिना स्नान-पूजन किए मुंह में पानी नहीं डाला। नेम का निभाना कठिन है। कोई बता दे कि हमने कभी बाजार की कोई चीज खाई हो, या किसी दूसरे के हाथ का पानी पिया हो, तो उसकी टांग की राह निकल जाऊं। सिलिया हमारी चौखट नहीं लांघने पाती, चौखट, बरतन-भांड़े छूना तो दूसरी बात है। मैं यह नहीं कहता कि मतई यह बहुत अच्छा काम कर रहा है, लेकिन जब एक बार बात हो गई तो यह पाजी का काम है कि औरत को छोड़ दे। मैं तो खुल्लमखुल्ला कहता हूं, इसमें छिपाने का कोई बात नहीं। स्त्री-जाति पवित्र है।
दातादीन अपनी जवानी में स्वयं बड़े रसिया रह चुके थे, लेकिन अपने नेम-धर्म से कभी नहीं चूके। मातादीन भी सुयोग्य पुत्र की भांति उन्हीं के पदचिह्नों पर चल रहा था। धर्म का मूल तत्त्व है पूजा-पाठ, कथा-व्रत और चौका-चूल्हा। जब पिता-पुत्र दोनों ही मूल तत्त्व को