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238 : प्रेमचंद रचनावली-6
 


वह हंसे-बोलेगी? सीधे मुंह बात तो करती नहीं।'

'तुम-जैसों को छोड़कर उसके पास और जायगा ही कौन?'

'उसके द्वार पर अच्छे-अच्छे नाक रगड़ते हैं, धनिया, तू क्या जाने। उसके पास लच्छमी है।'

'उसने जरा-सी हामी भर दी, तुम चारों ओर खुसखबरी लेकर दौड़े।'

'हामी नहीं भर दी, पक्का वादा किया है।'

होरी रोटी खाने गया और सोभा अपने घर चला गया तो सोना सिलिया के साथ बाहर निकली। वह द्वार पर खड़ी सारी बातें सुन रही थी। उसकी सगाई के लिए दो सौ रुपये दुलारी से उधार लिए जा रहे हैं, यह बात उसके पेट में इस तरह खलबली मचा रही थी, जैसे ताजा चूना पानी में पड़ गया हो। द्वार पर एक कुप्पी जल रही थी, जिससे ताक के ऊपर की दीवार काली पड़ गई थी। दोनों बैल नांद में सानी खा रहे थे और कुत्ता जमीन पर टुकड़े के इंतजार में बैठा हुआ था। दोनों युवतियां बैलों की चरनी के पास आकर खड़ी हो गईं।

सोना बोली-तूने कुछ सुना? दादा सहुआइन से मेरी सगाई के लिए दो सौ रुपये उधार ले रहे हैं।

सिलिया घर का रत्ती-रत्ती हाल जानती थी। बोली-घर में पैसा नहीं हैं, तो क्या करते?

सोना ने सामने के काले वृक्षों की ओर ताकते हुए कहा-मैं ऐसा ब्याह नहीं करना चाहती जिससे मां-बाप को कर्ज लेना पड़े। कहां से देंगे बेचारे, बता पहले ही कर्ज के बोझ से दबे हुए हैं। दो सौ और ले लेंगे, तो बोझा और भारी होगा कि नहीं?

'बिना दान-दहेज के बड़े आदमियों का कहीं ब्याह होता है पगली? बिना दहेज के तो कोई बूढ़ा-ठेला ही मिलेगा। जायगी बूढे के साथ?'

'बूढ़े के साथ क्यों जाऊं? भैया बूढ़े थे जो झुनिया को ले आए? उन्हें किसने कै पैर दहेज में दिए थे?'

'उसमें बाप-दादा का नाम डूबता है।'

'मैं तो सोनारी वालों से कह दूंगी, अगर तुमने एक पैसा भी दहेज लिया, तो मैं तुमसे ब्याह न करूंगी।'

सोना का विवाह सोनारी के एक धनी किसान के लड़के से ठीक हुआ था।

'और जो वह कह दे, कि मैं क्या करूं, तुम्हारे बाप देते हैं, मेरे बाप लेते हैं, इसमें मेरा क्या अख्तियार है?'

सोना ने जिस अस्त्र को रामबाण समझा था, अब मालूम हुआ कि वह बांस की कैन है। हताश होकर बोली-मैं एक बार उससे कहके देख लेना चाहती हूं, अगर उसने कह दिया, मेरा कोई अख्तियार नहीं हैं, तो क्या गोमती यहां से बहुत दूर है? डूब मरूंगी। मां-बाप ने मर-मरके पाला-पोसा। उसका बदला क्या यही है कि उनके घर से जाने लगूं, तो उन्हें करजे से और लादती जाऊं? मां-बाप को भगवान् ने दिया हो, तो खुसी से जितना चाहें लड़की को दें, मैं मना नहीं करती, लेकिन जब वह पैसे-पैसे को तंग हो रहे हैं, आज महाजन नालिस करके लिल्लास करा ले, तो कल मजूरी करनी पड़ेगी, तो कन्या का धरम यही है कि डूब मरे। घर की जमीन-जैजात तो बच जायमी, रोटी का सहारा तो रह जायगा। मां-बाप चार दिन मेरे नाम को रोकर संतोष कर लेंगे। यह तो न होगा कि मेरा ब्याह करके उन्हें जनम-भर रोना पड़े। तीन-चार साल में दो सौ के दूने हो जाएंगे, दादा कहां से लाकर देंगे?