'कितने रुपये चाहिए?'
'तुम कितने दे सकोगी?'
'सौ में काम चल जायगा?'
होरी को लालच आया। भगवान् ने छप्पर फाड़कर रुपये दिए हैं, तो जितना ले सके, उतना क्यों न ले।
'सौ में भी चल जाएगा। पांच सौ में भी चल जाएगा। जैसा हौसला हो।'
'मेरे पास कुल दो सौ रुपये हैं, वह मैं दे दूंगी।'
'तो इतने में बड़ी खुसफेली से काम चल जायगा। अनाज घर में है, मगर ठकुराइन, आज तुमसे कहता हूं, मैं तुम्हें ऐसी लच्छमी न समझता था। इस जमाने में कौन किसकी मदद करता है, और किसके पास है। तुमने मुझे डूबने से बचा लिया।'
दिया-बत्ती का समय आ गया था। ठंडक पड़ने लगी थी। जमीन ने नीली चादर ओढ़ ली थी। धनिया अन्दर जाकर अंगीठी लाई। सब तापने लगे। पुआल के प्रकाश में छबीली, रंगीली, कुलटा नोहरी उनकी सामने वरदान-सी बैठी थी। इस समय उसकी उन आंखों में कितनी सहृदयता थी, कपोलों पर कितनी लज्जा, ओठों पर कितनी सत्प्रेरणा।
कुछ देर तक इधर-उधर की बातें करके नोहरी उठ खड़ी हुई और यह कहती हुई घर चली-अब देर हो रही है। कल तुम आकर रुपए ले लेना महतो।
'चलो, मैं तुम्हें पहुंचा दूं।'
'नहीं-नहीं, तुम बैठो, मैं चली जाऊंगी।'
'जी तो चाहता है, तुम्हें कन्धे पर बैठाकर पहुंचाऊं।'
नोखेराम की चौपाल गांव के दूसरे सिरे पर थी, और बाहर-बाहर जाने का रास्ता साफ था। दोनों उसी रास्ते से चले। अब चारों ओर सन्नाटा था।
नोहरी ने कहा-तनिक समझा देते रावत को। क्यों सबसे लड़ाई किया करते हैं। जब इन्हीं लोगों के बीच में रहना है, तो ऐसे रहना चाहिए न कि चार आदमी अपने हो जायं। और इनका हाल यह है कि सबसे लड़ाई, सबसे झगड़ा। जब तुम मुझे परदे में नहीं रख सकते, मुझे दूसरों की मजूरी करनी पड़ती है, तो यह कैसे निभ सकता है कि मैं न किसी से हंसूं, न बोलूं, न कोई मेरी ओर ताके, न हंसे। यह सब तो परदे में ही हो सकता है। पूछो, कोई मेरी ओर ताकता या घूरता है तो मैं क्या करूं। उसकी आंखें तो नहीं फोड़ सकती। फिर मेल-मुहब्बत से आदमी के सौ काम निकलते हैं। जैसा समय देखो, वैसा व्यवहार करो। तुम्हारे घर हाथी झूमता था, तो अब वह तुम्हारे किस काम का। अब तो तुम तीन रुपए के मजूर हो। मेरे घर तो भैंस लगती थी, लेकिन अब तो मजूरिन हूं, मगर उनकी समझ में कोई बात आती ही नहीं। कभी लड़कों के साथ रहने की सोचते हैं, कभी लखनऊ जाकर रहने की सोचते हैं। नाक में दम कर रखा है मेरे।
होरी ने ठकुरसुहाती की-यह भोला की सरासर नादानी है। बूढ़े हुए, अब तो उन्हें समझ आनी चाहिए। मैं समझा दूंगा।
'तो सबेरे आ जाना, रुपए दे दूंगी।'
'कुछ लिखा पढ़ी....।'
'तुम मेरे रुपए हजम न करोगे, मैं जानती हूं।'
उसका घर आ गया था। वह अंदर चली गई। होरी घर लौटा।